साल 20 वां फिर नहीं

01-01-2021

साल 20 वां फिर नहीं

सुशील यादव (अंक: 172, जनवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

दिल के अरमां क्या रखें, ऐसा गुज़रा साल।
यहाँ अधमरा  हो गया, क्या नैहर  ससुराल॥
 
जाते-जाते कह गया, दशक बीसवां साल।
पापी को था मारना, हुए पुनीत हलाल॥
 
इस धरती में बच गए, अत्याचारी लोग।
मैं भी उनमें एक हूँ, अजब लगा संयोग॥
 
सर्प दंश से बच सकें, नहीं करोना काट।
नियम करोना पालिए, सीधी चाहो खाट॥
 
स्वागत साल नया करो, विनती हो भगवान।
साल बीसवां फिर नहीं, आए कभी ज़ुबान॥
 

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