पिता

महेश रौतेला (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मैं पिता बन जाऊँ
और थक कर घर आऊँ
तो तुम्हें एक कहानी सुनाऊँ।
राजा-रानी की नहीं
राजकुमार-राजकुमारी की नहीं,
मज़दूर-मालिक की नहीं
ग़रीब-अमीर की नहीं,
बस, एक स्नेहिल पिता होने की।
 
मैं कहूँ और तुम सुनो,
तुम्हारे कान पकड़ दूँ
कि तुम सुन सको,
तुम्हारी आँखें खोल दूँ
कि तुम देख सको,
तुम्हारा मन पकड़ लूँ
कि तुम खेल सको,
बस, एक स्नेहिल पिता बन अशीषता रहूँ।

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