जहाँ-जहाँ अब जा रहा , वहीं हुआ हूँ ढेर
मेरी उतरन खाल में, जंगल घूमे शेर
तुझको सौंप वसीयतें, दे दी सब जागीर
अब खींचो पहचान की, कल से बड़ी लकीर
ख़ुद के ख़ातिर खींच लूँ, संयम ख़ास लकीर
मेरे गुण की खान से, बने स्वर्ण ज़ंजीर
अवगुन मुझमें ना रहे, बनूँ गुणों की खान
छोटे- बड़कों की क़दर, होवे एक समान
नदिया सूखी यूँ मिली, तैरा नहीं जहाज़
मन भीतर भी है यही, ठहर गया है आज
हाथ हमे हैं रस्सियाँ, पाँवों में ज़ंजीर
मज़े-मज़े तुम खा रहे, सत्ता सुख की खीर
कौन यहाँ पर लूटता, निर्भय हुआ निशंक
गली-गली में देख लो ,शहरों का आतंक
हँसते-हँसते रो पड़ा, मसखरा यहाँ एक
कुँए रोज़ था डालता, नेकी करके नेक
सुविधा की लो बन्द है, खुली हुई दुकान
इन गलियों चाह की, सुलभ नहीं फ़रमान
कल तक पहनी खाल में, शेरों का आभास
आज रिदा से आ रही, ख़ून-ख़राबा बास
आए दिन होता यहाँ, गली-गली बकवास
जो तुम मेरे आदमी, केवल तुम ही ख़ास
जाने क्यों इस बार भी,मौसम लगे तनाव
रेतीले मरुथल कहाँ, ले कर घूमे नाव