फ़साद की जड़

01-02-2021

फ़साद की जड़

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

रेलगाड़ी में लोग मौक़ा मिले तो बतियाते ज़रूर हैं। वे दोनों भी बतियाने लगे। सफ़र लंबा था। जानते थे कि आपस में गपशप करने से सफ़र अच्छा कटता है। पहल गोपाल जी ने की।

"आप भी इलाहाबाद तक?"

"जी हाँ; प्रयागराज तक!"

जवाब सुनकर गोपाल जी समझ गए कि इन श्रीमान जी से आगे बात की तो सफ़र कटेगा नहीं, काटेगा। फलस्वरूप, वे उठकर  दरवाज़े के पास जाकर बाहर का नज़ारा देखने लगे।

लौटे तो उनका अनुमान सही निकला। प्रयागराज जाने वाले सज्जन एक दूसरे सज्जन से कह रहे थे – नेहरू ही सारे फ़साद की जड़ है।

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