हज़ारों रंग ख़्वाबों के दिखे अब

01-09-2025

हज़ारों रंग ख़्वाबों के दिखे अब

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222    1222    122
 
हज़ारों रंग ख़्वाबों के दिखे अब
हमारी रूह ने नग़्मे सुने अब
 
हमें मालूम है क्या है हक़ीक़त
मगर अच्छा कि तू चुप ही रहे अब
 
हवा कुछ कह रही है राज़ अपने
गरम माहौल है, तू ही बचे अब
 
गिला हमको नहीं कुछ भी किसी से
मगर रुसवा ज़माने में हुए अब
 
इशारों को कभी समझा तो होता, 
हमीं नादान अब तक ही रहे अब
 
अदावत से चली कब ज़िंदगानी
मोहब्बत ही फ़क़त रस्ता दिखे अब
 
 चलो ‘शोभा’ अमन की बात कर लें
यहाँ सब कुछ फ़क़त अपना लगे अब

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
सजल
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में