'हैप्पी बर्थ डे'

15-12-2019

'हैप्पी बर्थ डे'

दिलीप कुमार (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का 
जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला"

ऐसा ही कुछ रहा, इस हफ़्ते जब कश्मीर का नया जन्म हुआ। धमकी, ब्लैकमेलिंग और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत, कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के दिन अब लद गये। अब अलगाववादी को पलकों पर नहीं बिठाया जाएगा बल्कि उनकी आँखों के बिनाई भी खींच ली जायेगी।

चंदे और लूट-खसोट पर जीने वाले लोग,जो अब तक रुपयों की रबड़ी, मलाई,चाशनी काटते रहे हैं और अब अचानक से बेरोज़गार और महत्वहीन हो चले हैं। अब चुनिंदा लोगों के अच्छे दिन जाते रहे तो कश्मीर की अवाम के अच्छे दिन आ गये।

अपना साम्राज्य खोने वाले लोग अब कश्मीर में ठंडी साँसे भर रहे हैं और कहते हैं- 

"थे बड़े बेदर्द लम्हे ख़त्मे दर्दे ए इश्क़ के,
थी बड़ी बेमेहर सुबहें, मेहरबां रातों के बाद"।

कश्मीर के नए जन्म ने दुनिया में कितने लोगों को बेरोज़गार और महत्वहीन कर दिया है ये बात ख़ासी दिलचस्प है। कश्मीर पर मलेशिया के 94 वर्षीय प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने भारत के ज़बरदस्ती कब्ज़े वाला बयान क्या दिया, उन्होंने बैठे-बिठाये आफ़त मोल ले ली। इधर बम्बई के पॉम ऑयल व्यापारियों ने बहिष्कार का बिगुल बजा दिया। ये बिगुल इतनी तेज़ आवाज़ में बजा कि मलेशिया के ऐंठने वाले नेताओं के कानों से ख़ून निकलने लगा। चंद रोज़ पहले तो भारत के भगोड़े ज़ाकिर नाइक को पलकों पर बिठाये हुए था मलेशिया और अब भारत की दीवाली को मलेशिया अपना महत्वपूर्ण इवेंट बताते नहीं थक रहा है। ये इसलिये हुआ है क्योंकि भारत के व्यापरिक बहिष्कार से मलेशिया की जीडीपी में 3 फीसदी कमी आने के आसार हैं. . . इसे ही भारत में कहा जाता है - "घर में नहीं दाने,अम्मा चलीं भुनाने"।

महातिर मियाँ को किसी ने नहीं समझाया कि शीशे के घरों में रहने वाले लोग पत्थर नहीं फेंका करते. . . अब भारतीय नेतृत्व मलेशिया और थाईलैंड के सीमा विवाद में काफ़ी दिलचस्पी ले रहा है। महातिर की इस ग़लती को वहाँ की सरकार के सहयोगी दल ने "एक बूढ़े आदमी के ज़ुबान की फिसलन" करार दिया है। ये फिसलन इतनी महँगी पड़ेगी मलेशिया वालों को किसी को अंदाज़ा था. . काश किसी ज़ाकिर नाइक के पिट्ठू ने उसे ये भारतीय सबक़ सिखाया होता कि - 

"बातहिं हाथी पाइये, बातहिं हाथी पाँव"।

कश्मीर के ये जन्मदिन का केक इसी रास्ते तुर्की पहुँचा जहाँ अब ये केक तुर्की वालों का हाज़मा बिगाड़ रहा है वहाँ के प्रधानमंत्री एर्दोगेन की बदज़ुबानी के सबब। डेढ़ लाख भारतीय, जो हर साल तुर्की घूमने जाते हैं और जो तुर्की की बहुसंख्य आबादी की रोज़ी-रोटी का आधार हैं। अब कश्मीर पर तुर्की के नेता की बदज़ुबानी ने तुर्की में नया स्यापा खड़ा कर दिया है। तमाम होटलों और टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स पर भारतीयों के बहिष्कार से ख़ासे आर्थिक नुक़सान की संभावना है। अच्छा ही है अब भारत के लोग कश्मीर जाएँ और यहाँ के लोगों को पर्यटन से रोज़ी-रोटी मिले, ना कि तुर्की के लोगों को। वो कश्मीर का राग वैसे ही अलापते रहें जैसे हुर्रियत के लोग अपनी सुविधाओं के ना होने का दुखड़ा रोते रहते हैं। हुर्रियत को भी कश्मीर के नए जन्मदिन का केक खिलाना चाहिये भले ही वो गले-गले तक चंदा खाकर अघाये हों।
कश्मीर ने क्या-क्या गुल ना खिलाये, दिन रात कश्मीर का आलाप करने वाले इमरान खान नियाजी की कुर्सी जाने को है। लोग उनसे कहते हैं कि कश्मीर भूल जाओ, मुजफ्फराबाद, इस्लामाबाद बचाओ, पाकिस्तान बचाओ, किसी ने सच ही कहा है -

"वतन की फ़िक्र कर नादां कयामत आने वाली है 
तेरी बर्बादियों के चर्चे हैं आसमानों में"

बड़े भाई कश्मीर का हैप्पी बर्थडे हुआ तो छोटा भाई लद्दाख पीछे रहे. . . उसका भी जन्मदिन धूमधाम से हुआ। कश्मीर और लद्दाख पर हमेशा ज्ञान देने वाले कश्मीर ने इस साल दिवाली पर चीन की कश्मीर पर बदज़ुबानी के बाद चीनी मोबाइल और झालरों की बिक्री 80 फीसदी तक घट गयी। चीन इस आर्थिक नुक़सान से बिलबिलाया हुआ है लेकिन चीनियों को अब इस देश से चीनी कम वाली ही चाय मिलेगी। यहाँ ये बताना बेहद ज़रूरी है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने बगदादी की मौत की ख़बर इंडिया टीवी के रजत शर्मा से कंफर्म करने के बाद ही ऑफ़िशियल घोषणा की थी। सुना है कुछ भारतीय टीवी चैनलों ने बगदादी पर जो प्रोग्राम बना रखे थे और अब उनका टेलीकास्ट ना हो पाने पर अमेरिका ने मुआवज़ा देने की पेशकश की है। भारतीय चैनलों के बहुत मनुहार और प्रलोभनों के बावजूद अमेरिका ने बगदादी के कच्छे के बारे में फुटेज देने से मना कर दिया है। बाज़ार विशेषज्ञों ने एक अनुमान लगाया है कि यदि भारतीय टीवी चैनलों को बगदादी का कच्छा मिल जाता तो ये अमेरिका का भारत की मीडिया इंडस्ट्री में सबसे बड़ा निवेश होता. . ये निवेश कितना होता. . इसका आकलन जारी है।

इसी बीच भारत के तमाम भू भाग को अपने नक़्शे में अपना हिस्सा बताने वाले चीन की गुगली पर भारत ने अपना मास्टर स्ट्रोक मार दिया है। भारत वर्ष ने अपना नया नक़्शा जारी कर दिया है जिसमें 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित राज्यों से सुसज्जित भारत ने अक्साई चिन को भारत का हिस्सा दिखाया है. . . इसी ही "टिट फ़ॉर टैट" कहा जाता है डिप्लोमेसी में।

भारत के इस नए नक़्शे पर एक वामी मित्र ने पूछा कि - 
"अब आपको नये कश्मीर और नये लद्दाख पर क्या कहना है?"

भारत के नए नक़्शे को देखते हुए मैंने हँसते हुए कहा-

"हैप्पी बर्थ डे टू बोथ ऑफ़ यू!"

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