यूँ ही बस
भीकम सिंह
मैंने जब-जब
जिस-जिस के
जूते उठाए
तब-तब टूटा मैं,
अन्दर तक।
आत्म सम्मान को
जैसे मारते रहे
करते रहे क्षीण
राजनेताओं के,
बन्दर तक।
आज सुख में
दुःख भरे
स्मृतियों के पन्ने
पलटे जा रहा हूँ मैं,
अम्बर तक।
2 टिप्पणियाँ
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Waah waaah
-
बहुत सजीव हृदय विदारक कविता
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