सोच

भीकम सिंह (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

अपने सुन्दर डील-डौल, सोने की मोटी चेन, अँगूठी और इनडेवर के लालच से ग्रेटर नोएडा के गाँवों में वह कई लड़कियों को अपने निकट लाता रहा है। लेकिन आज परिस्थितियाँ कुछ विचित्र-सी हुई कि ग्रैंड वेनिश माॅल की पार्किंग के पचास रुपये बचाने के लिए उसने, उसे बाहर टूटी-फूटी सड़क पर ही उतार दिया। 

“मेरे लारै आणे की जुर्रत ना है,” कहकर वो ऑटो में जा बैठी। 

वह दौड़कर पास आया और डपटकर बोला, “रै फिल्म-सिलम ना देखणी तन्नै!”

वो चुप। 

बोलती क्यूँ ना? 

वो पल्लू के अन्दर से चीखी, “तन्नै परी चौक पे रोंग सैड़ लेके टैम बचाया, अडै पैसे, तु तो घणा कसूता! तेरी गैल ताल ना खावै।”

ऑटो वाला पूरे परिदृश्य की धूल-सी झाड़ता बोला, “कहाँ चलना है जी!”

“जगत फारम,” वो धकियाकर बोली। 

वह इनडेवर के सहारे सिर पर हाथ रखकर सोचता रह गया। बिना पार्किंग के खड़ी गाड़ियाँ हाॅर्न दिए जा रहीं  थीं। 

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