नीयत

भीकम सिंह (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

गली के लगभग सभी दीये बुझ चुके थे, बच्चों ने पटाखे जलाना बन्द कर दिया था और दरवाज़े बन्द कर सभी अपने घरों में घुस गए थे। परन्तु विधायक का मकान गली के आधे हिस्से में रोशनी बिखेर रहा था। ऊपरी मंज़िल से बड़ा-सा दीपक और कंडील की रोशनी फैल रही थी जो नीचे श्री राम के घर को भी रोशन कर रही थी। अचानक श्री राम के घर का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और किसी ने दरवाज़ा खोल दिया। जिसने दरवाज़ा खोला उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी। उसने नज़र उठाकर सामने देखा, मिठाई और ड्राई फ्रूट्स के हर तरह के पैकेट . . . हल्दीराम, बिकानो, सोना, जगन, सिंघल, रामादि विधायक-दरबार में पड़े सुगंध बिखेर रहे थे, जिन्हें एक ऑटो वाला ऑटो में बार-बार रख रहा था। 

उसका स्वभाव जिज्ञासु था। उसने यह जानने की उत्सुकता दिखाई कि आख़िर जिन्हें शुभचिंतक लेकर आए थे उन डिब्बों को ऑटो वाला क्यों ले जा रहा है? 

उसने ऑटो वाले से पूछा, “भैय्या! ये कहाँ ले जा रहे हो?” 

ऑटो वाले ने मुॅंह लटकाए ही कहा, “इतनी बड़ी दुकान खोल रखी है, उसी पर।”

थोड़ी देर ठहर कर उसने फिर पूछा, “बिक्री के लिए?” 

इस प्रश्न के जवाब में ऑटो वाले ने नज़र दूसरी ओर फेर ली। 

उसने एक-एक क़दम बढ़ाया और ऑटो वाले के पास आ खड़ा हुआ, हाथ के इशारे से पूछा, “मामला क्या है?” 

“विधायक जी, ओहदे में कित्ते बड़े क्यों ना हो जाए, नीयत बहुत छोटी है। यही चरित्र उनकी पार्टी का है,” ऑटो वाले की आवाज़ ताप से लहक गयी। 

आकाश स्याह था, परन्तु बेनक़ाब था। 

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