भीकम सिंह – हाइकु – 001
भीकम सिंह
1
बमक उठा
पगडण्डी का मन
देख सावन।
2
किलक पड़ा
पराजित-सा खेत
सूर्य ज्यों चढ़ा।
3
मौन छतों पे
ढूँढ़ती फिरें बातें
जेठ की रातें।
4
देख के बूटे
तरुओं के मन में
लड्डू-से फूटे।
5
खेत से बैल
दूर का रिश्ता हुआ
ताख़ पे जुआ।
6
खेत का नाम
किसान लेके बोए
ज्यों रिश्ता होए।
7
खेत बेदम
ऊसर पसरा है
सुस्त क़दम।
8
पथ बुहारें
झूठ के किरदार
फोटो उतारें।
9
भरा ज्यों पेट
स्मृति में कौंधते
नए आखेट।
10
हर गाँव में
लेके बैठी रूढ़ियाँ
बड़ी-बूढ़ियाँ।
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