भीकम सिंह – चोका – गाँव
भीकम सिंह
गाँव-1
कटे छँटे हैं
बेबस गन्ने सारे
बाँकी आँखों से
देखें दिन में तारे
सुख दुःख का
मिला जुला-सा भाव
खेतों में खड़ा
भर रहा हुकाँरे
मिल, बुरा है
बढ़ाता अँधियारे
उगे हैं भय न्यारे।
गाँव-2
सूर्य ने ढाँका
भीगा-सा खलिहान
खेतों में लौटी
उजली-सी मुस्कान
उँगलियों ने
खोली और सँवारी
गेहूँ की बाली
सिरहाने आ बैठी
हवा थी ठाली
मेघों की देख अति
हाथों में आई गति।
मिल=कारखाना
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