सूत ना कपास
भीकम सिंह
लज्जाराम साठ की उम्र में भी पूरी तरह तंदुरुस्त हैं और दस वर्षों से महाविद्यालय प्रबंध तंत्र के अध्यक्ष हैं। आज लज्जाराम ने धोती-कुर्ता पहन रखा था, महाविद्यालय में हवा उसके साथ वहीं खेल खेलकर उसे परेशान कर रही थी। फिर भी भद्रता के नाते वे अपनी लज्जा बचा रहे थे, पर मुँह से कुछ बोल नहीं रहे थे। धोती सँवार रहे थे बार-बार।
एक लम्बे अरसे बाद एनटीपीसी ने महाविद्यालय में पुस्तकालय बनाने की योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी है। ख़बर मिलते ही लज्जाराम के हाथ में लाइब्रेरी साइंस डिग्रीधारी बिरादरी की महिलाओं के बायो-डाटा आ गए। रिश्तेदारों की सिफ़ारशें लगने लगी। महाविद्यालय प्रांगण में खड़े-खड़े लज्जाराम अपने सपनों का तना-बाना बुनते हुए सोच रहे हैं और धोती सँवार रहे हैं। जिन लोगों को योजना की जानकारी हुई वे भी लज्जाराम का कुशल-क्षेम लेने महाविद्यालय पर आ खड़े हुए।
तभी एक महिला अभ्यर्थी मिठाई का डिब्बा और आवेदन के काग़ज़ातों के साथ हाज़िर हुई। लज्जाराम ने न देखा, न पढ़ा, हस्ताक्षर कर दिए। पास खड़े अकाउंटेंट ने पूछा, “सर! किस पर हस्ताक्षर किए हैं?”
“पुस्तकालाध्यक्ष की नियुक्ति पर,” स्वर में खुशमिज़ाजी उतारते लज्जाराम ने कहा।
“हूँ,” अकाउंटेंट ने सिर्फ़ इतना कहा।
“पुस्तकालय तैयार होने तक इसकी नियुक्ति रहेगी,” कहकर लज्जाराम ने लज्जाहीन ठहाका लगाया।
अकाउंटेंट ने ख़ुद को भी ठहाके में शामिल कर लिया।
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