गंदगी
भीकम सिंह
वह गालियों का उस्ताद है, अपने रोज़ के जीवन में वह जितनी गालियाँ देता है क्षेत्र में कोई दूसरा नेता नहीं देता। शाकाहारी और मांसाहारी, संसदीय और असंसदीय दोनों प्रकार की गाली में वह अपना सानी नहीं रखता। समाज के जिस वर्ग का वह नेतृत्व करता है उसके लिए गालियों से परहेज़ करना असम्भव है। वह गालियाँ अभावग्रस्त जीवन से निपटने के लिए, दूसरों को निपटाने के लिए स्त्री-पुरुषों के प्रजनन अंगों का बड़ा माकूल सृजनात्मक प्रयोग करता है।
आज भी जब जी टी रोड धुँध में लिपटी अलसाई-सी पड़ी थी। उसके घर के सामने मुनसिपल्टी का कैंटर कूड़ा भर रहा था। कैंटर के लहकने से गंदगी का एक बड़ा-सा ढेला उसके घर से टकराता हुआ दूर तक चला गया। वह घूरता हुआ बोला, “अबे स्साले . . . तेरी माँ . . . आज नामांकन है, लोग-बाग आयेंगे और तूने ये गंदगी का ढेर फैला दिया।”
उसने ग़ुस्से में अपने बदन पर पड़े शाॅल को इतनी ज़ोर से खींचा कि उसका चश्मा नीचे गिर कर टूट गया।
कैंटर का ड्राइवर निरपेक्ष भाव से सोच रहा था, “मुँह से चाहे जितना फैलाओ?”
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