भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
भीकम सिंह
1.
बाॅंध के पीछे
बैठी है नदी चुप
जी तो करता
तोड़के खामोशियाॅं
ले, नये मोड़ कुछ।
2.
नदी ने देखा
बारिश का मौसम
हुआ गुमान
नींद टूटी पेड़ों की
ख़ौफ में आसमान।
3.
इल्ज़ाम दिये
गाॅंव-गलियारों को
नदी ने देखा
ज़हर उगलते
नालों की दीवारों को।
4.
हाॅंफता पानी
कछारों में फिरता
दर-ब-दर
लेकर चलती हैं
नदियाॅं चुल्लू-भर।
5.
जाॅं-बाज़ नदी
नालों की क़ैद में है
कुछ दिनों से
सिन्धु बड़ा नाराज़
दिखा, कुछ दिनों से।
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