नदी: तीन कविताएँ
भीकम सिंहनदी-1
ऐसा लगता है
नदी—
घाटियों से निकलकर
चुपचाप बही है।
जैसे कोई
बिन ब्याही—
जीवन के मोड़ों पर
उलझ गयी है।
नदी-2
आज देखो
वो फिर
आसमान को ओढ़े
किनारा-सा करती
कल-कल बहकाये।
एक नदी
वादों से भागे
जैसे रोज़ मेरे आगे
नया-सा मोड़
काटने आये।
नदी-3
एक नदी
काली देह वाले
नाले तक गई।
यह ख़बर
सिन्धु को
उदास कर गई।
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