भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
भीकम सिंह
1.
प्रेयस तक
पहुँची नहीं बात
एक मन था
डूबता-उतरता
प्यार में उस रात।
2.
ज़िद पे अड़ा
प्रेम का पलचिन
अब क्या करे
विरह में बेसुध
मधुमास का दिन।
3.
धुएँ के छल्ले
होंठों पर उड़ता
प्रेम में पड़ा
एक आवारा दिन
यूॅं उत्सव मनाता।
4.
अखरी नहीं
वो मुस्कान लुटाती
फ़ालतू बात
गड़मड़ हो गए
भाव, कल की रात।
5.
जी रहा, प्रेम
अंगों से झरा हुआ
स्पर्श कोई
आस का दीया बाले
ज्यों विरह को टाले।
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