भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
भीकम सिंह
1.
सोच में बैठें
खेत की मेड़ पर
वो, आजकल
बारिश में धूप का
जैसे कोई दख़ल।
2.
जब भी वह
राह से गुज़रते
यूॅं सॅंवरते
बारिश में ज्यों मेघ
नींद में उतरते।
3.
जैसे उसकी
पदचाप-सी हुई
गली में कई
मौसम के तेवर
माघ में हुए मई।
4.
तेरे ही लिए
कुहनी पे टिका है
मेरा आगाज़
पीठ सरहद है
जुगनू हमराज़।
5.
छुई सवेरे
धूप ने जब ओस
वसंत खिला
यादों का पतझड़
करता रहा गिला।
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