छन की आवाज़ 

15-09-2023

छन की आवाज़ 

भीकम सिंह (अंक: 237, सितम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

नवाज़ देवबंदी ने सुनी दिल टूटने की आवाज़। 

मैंने कान बंद कर लिए। उसके आँसुओं की बूँदें ढुलक पड़ीं। तीस साल बाद आज अर्चना को मैंने याद किया। अर्चना को याद करने का कारण नवाज़ देवबंदी का यह शेर है, “जब हाथ में शीशा था न सागर था न मीना। गर दिल नहीं टूटा तो फिर छन से गिरा क्या।”

तीस साल पहले अर्चना की फुसफुसाटों में मैं होता था। सारा दिन वह पुस्तकालय में बैठी रहती। ‘गुनाहों का देवता’ पर उँगलियाँ फिराती, थाप देती रहती। कोई उससे यह उपन्यास माँगता तो साँप की तरह फुफकारती। 

उन दिनों वह मेरी गुरु बहिन हुआ करती थी। हम दोनों डॉ. कंचन सिंह के निर्देशन में शोध कार्य कर रहे थे। उसका विषय धर्मवीर भारती पर था। वह वुमेन हाॅस्टल में रहती थी जो हिन्दी विभाग की बग़ल में था। 

उसी दौरान ग्रामीण इलाक़ों में बनने वाली कलाकृतियों की प्रदर्शनी महाविद्यालय में लगी थी। मैं भी अर्चना के साथ प्रदर्शनी देखने गया था। प्रदर्शनी में भित्तिचित्र, तरह-तरह के मुखौटे, देवी-देवताओं के चित्रों का संग्रह था। इस प्रदर्शनी का आयोजन ललित कला विभाग ने किया था। अर्चना की वार्डन इन्हीं आयोजक की पत्नी थी। इस नाते मैं और अर्चना उनके पास ही खड़े थे कि एक प्रेस वाले ने आयोजक से गंभीर होकर अचानक पूछ लिया, “प्रोफ़ेसर सहाब! आपको ये कलाकृतियाँ कैसी लग रही हैं? 

उन्होंने उत्सुकतावश अर्चना के कँधे पर हाथ रखा और दबाते हुए प्रश्न का उत्तर दे दिया . . . “बहुत सुन्दर . . . बहुत ही ख़ूबसूरत . . . . . . और मादक।” 

इस उत्तर से अर्चना स्तब्ध रह गई। एक अजीब-सा मौन वहाँ छा गया। अर्चना के अन्दर जैसे कुछ टूटा। आँसू की एक बूँद ढुलकी। 

आज नवाज़ देवबंदी का शेर पढ़कर मुझे अहसास हुआ कि उस दिन अर्चना में छन की आवाज़ हुई थी। 

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