भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
भीकम सिंह
1.
प्रेम में तुम
मुझमें रची-बसी
अन्दर तक
कोई फैली हो नदी
ज्यों समन्दर तक।
2.
दिल लगा ज्यों
खिड़कियाॅं मन की
खुली आँखों में
और नज़दीकियाँ
बढ़ गई पाखों में।
3.
बीते लम्हों में
तुम जब दिखती
नज़रें मेरी
फिर से वही तीर
कमान पे रखती।
4.
भटक गया
सिलसिला प्यार का
मुद्दत हुई
नया पता यार का
ढूॅंढ़ती ऑंखें मुई।
5.
खो दिया उसे
पहली ही रात से
बढ़ता रहा
फिर ख़ालीपन ज्यों
हर एक बात से।