भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
भीकम सिंह
1.
तह-पे-तह
मख़मली दूबों पे
हुई जो बातें
विछोह में वो यादें
काली करती रातें।
2.
पैर बाहर
ठिठके कई बार
तेरे ही वास्ते
खुले ना फिर भी
मुलाक़ात के रास्ते।
3.
खिली ज्यों कली
बाग़ों में, बहारों में
बढ़ा त्यों ताप
गली के, मुहल्लों के
बुझे-से शरारों में।
4.
प्यार की पर्तें
गोपनीय ही रहीं
कही ना कासु
तन का ताप बढ़ा
कोर में आए आँसु।
5.
फुर हो गई
तनिक-सा छूकर
रुकी-सी याद
प्रेम के दंश कई
दुखे, वर्षों के बाद।
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