निवेदन
भीकम सिंह
क्या करूँ, क्या ना करूँ
जब कभी भी
सोचता हूँ,
तो वहीं पहुॅंचता हूँ
ख़ुद ही ख़ुद से छुपकर।
लेटी है जहाँ
मेरी मासूम आदतें
खलिहानों पे
मिट्टी के घरौंदों में
राह तककर।
और गाॅंव से
करता हूँ निवेदन
कि छुए ना
मेरा बचपन
विकास के नाम पर।
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