मुफ़्तख़ोर

15-12-2023

मुफ़्तख़ोर

भीकम सिंह (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सुस्त क़दमों से चलते हुए उसे लगा जैसे किसी ने उसे पीछे से आवाज़ दी हो। उसे लगा जैसे यह आवाज़ भोपाल सिंह की है। वह एकदम रुक गया और पीछे मुड़कर देखने लगा। शादी के उस समारोह में आते-जाते लोग सब उसके अपने ही थे, पता नहीं क्यों? भोपाल सिंह ने उससे पूछा, “कैसे आये हो?” 

“न्यौते पर आयें हैं,” दाहिने हाथ से मूँछों को ऐंठते हुए उसने कहा। 

“न्यौते पर तो ठीक है जी, मेरा मतलब उधर . . .”

भोपाल सिंह का इशारा मंत्री की ओर था। शायद उनके साथ आए हो। शादी-ब्याह के समारोहों में नेताओं के लाव-लश्कर से भोपाल सिंह को कुढ़न होती है। शादी-ब्याह में इनके क़ाफ़िलों की पदचाप शुरू हुई नहीं कि समझो खाने की शामत आई। 

“उधर तो . . . जिन लोगों को रोस्टेड आइटम के साथ घूँट मारने होते हैं वही मंत्री के साथ होते हैं,” उसने हाथ पर हाथ मारकर ज़ोर का ठहाका लगाकर कहा। 

ठहाका बहुत देर तक ठहरा रहा। 

भोपाल सिंह को महसूस हुआ जैसे ठहाके का एक भाग कह रहा हो, “भोपाल सिंह! मुफ़्तख़ोर समझा है क्या?” 

भोपाल सिंह ने अपनी निगाहें नीची कर लीं, और धीरे-धीरे मंत्री की ओर बढ़ गया। 

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