यह तो होना था
भीकम सिंहयह तो होना था
कुछ तो खोना था
अपने हाथों से
कैसे-कैसे पग धोना था।
कौन जान सका
हमारे कच्चे चिट्ठे
कैसी-कैसी थैली के
हमें चट्टे-बट्टे होना था।
जाने कैसा वक़्त था
तृण-तृण भक्त था
घृणा के झाड़ों को
हमें ही बोना था।
याद नहीं कहाँ-कहाँ
और कितने गिरे हम
जीवन का बस एक
यही तो रोना था।
3 टिप्पणियाँ
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सुंदर रचना
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बहुत सुन्दर कविता !
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There is a depth in each word
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