गाँव-3
भीकम सिंह
गाँवों ने देखा
खेतों में उतरके
बड़े सदौसे
मृदा का खंड-खंड
पानी को कोसे
चित पड़ा है खेत
सूखे चौमासे
मेघों के टूट गये
ढोल-औ-तासे
गाँव के गाँव हुए
जैसे पानी के प्यासे।
सदौसे=अल-सुबह
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता-ताँका
-
- प्रेम
- भीकम सिंह – ताँका – 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
- भीकम सिंह – ताँका – नव वर्ष
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 003
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 004
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 007
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 008
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 010
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 011
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- कविता
- लघुकथा
- कहानी
- अनूदित लघुकथा
- कविता - हाइकु
- चोका
- कविता - क्षणिका
- विडियो
-
- ऑडियो
-