कविता

भीकम सिंह (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सूरज को खटकती है
साढ़े तेईस अंश की अक्षांश रेखा
जब
मौसम की लंबी ऊॅंगलियाॅं
उसकी उदासी छू लेती हैं 
नम हवा
वर्षा की गंध घोलती है
तो निर्मित होता है
सुखमय वातावरण
तब पृथ्वी का अक्ष
लिख रहा होता है
अपने उस हिस्से पर
ख़ूबसूरत कविताऍं। 

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