काला घोड़ा

01-01-2023

काला घोड़ा

भीकम सिंह (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

मैं 
और वह
जब शतरंज खेलते 
चुपचाप और बिना शर्त के
वह काले मोहरे ही लेता 
हमेशा काले ही लेता 
हर चाल पर
सोचने की आज़ादी लेता 
कई बार सोचता 
दिमाग़ के पेट में 
घुसकर 
आज सोचा है 
मोहरा लुटकर
कनखी मारके 
हैरान हुआ ऐसे 
बिना खेले हार गया हो जैसे 
अरे! 
काला घोड़ा तो है ही नहीं 
उसने चौंक कर कहा—
थोड़ा मौन हुआ 
फिर सोच कर कहा—
खेलूँ अगर
बिना काले घोड़े के
सभी चालें 
जिसमें हारना नियति है
जैसे आशंकाओं के बीच 
संभावनाओं के लिए 
मेरी राजनीति है। 

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