शो-ऑफ़
भीकम सिंह
फ़क़ीर चन्द के फ़ार्म हाउस पर सत्यनारायण कथा की चहलक़दमी सुबह के दस बजते-बजते शुरू हो गई थी। वहीं पर चाय पीते हुए पंडित जी ने देवी-देवताओं की अवमानना का प्रकरण सविस्तार बताया। पंडित जी का गोरा मुख उत्तेजना की आँच में लाल पड़ गया। भाटी के तर्क उसके कानों में गूँजते रहे, “पंडित जी! ये सत्यनारायण-वत्यनारायण पेट भरों के चोंचले हैं। जिसके बूते पर तुम ख़ुद को ‘शो-ऑफ़’ कर पाते हो।”
फ़ार्म हाउस के वातावरण में ख़ामोशी ठहरी हुई थी तभी पंडित जी अपनी जगह से उठकर फ़क़ीर चन्द के पास आए, और हाथ जोड़कर कहा, “महाराज! आप जैसों के प्रताप से ही सनातन सुरक्षित है।”
फ़क़ीर चन्द ताड़ गए कि पंडित जी काँवड़ियों के भण्डारे में भी मदद चाहते हैं। उन्होंने उत्साहपूर्वक कहा, “कि जितना दूध, ड्राई फ़्रूट्स और बासमती चावल लगेगा, सब उनकी तरफ़ से। रही भाटी जी की बात तो उनकी बॅंधी-बॅंधाई धारणा कौन तोड़ सकता है।”
पंडित जी ने सिर हिलाया, “अच्छा, अब मैं चलता हूँ,” कहकर मंदिर की ओर चले गए।