गुलमोहर की बात
भीकम सिंह
गुलमोहर की बात
लौट आई
आस-पास के कान,
खड़े हो रहे हैं।
ताप की नज़रों में
बसन्त के जाने का
कोई कौतूहल,
अटका हुआ है।
लम्हों को पकड़ने की
कोशिश में
सुलह कराती,
बात झगड़ती है।
खिड़की के सामने
क़सम-सी धूप
आज फिर,
सूरज दे रहा है।
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