व्यथा
भीकम सिंहओखली गूँगी हुई
सिलबट्टे का भी
निकला दम
अब बताओ
दुःखों को
कहाँ कूटे हम।
1 टिप्पणियाँ
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स्त्रियां तो अनादि कल से ओखली -सिलबट्टे पर कूटती पीसती रहीं क्या वे अपने दुखों को भी कभी कूट और पीस पाईं? यहाँ तक कि आज भी मिक्सर ग्राइंडर के ज़माने में वे 'लिक्विफाई 'कर दी जाती हैं अपना व्यक्तित्व वे खुलकर कहां दिखा पाती हैं ???
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