व्यथा

भीकम सिंह (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

ओखली गूँगी हुई 
सिलबट्टे का भी 
निकला दम
अब बताओ 
दुःखों को 
कहाँ कूटे हम। 

1 टिप्पणियाँ

  • स्त्रियां तो अनादि कल से ओखली -सिलबट्टे पर कूटती पीसती रहीं क्या वे अपने दुखों को भी कभी कूट और पीस पाईं? यहाँ तक कि आज भी मिक्सर ग्राइंडर के ज़माने में वे 'लिक्विफाई 'कर दी जाती हैं अपना व्यक्तित्व वे खुलकर कहां दिखा पाती हैं ???

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता-ताँका
कविता
यात्रा-संस्मरण
लघुकथा
कहानी
अनूदित लघुकथा
कविता - हाइकु
चोका
कविता - क्षणिका
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में