सागरीय तट
भीकम सिंहसागर में भाटा आये
अथवा ज्वार
तट बड़ा ही,
होशियार।
सागर का बदन
छूने को होता
करता नहीं,
इन्तज़ार।
वो नहीं जानता
सागर मिलने
क्यों आता उससे,
बार-बार।
प्रेमी की तरह
लहरें दौड़तीं
और मर जातीं,
हर बार।
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सुंदर पंक्तिया
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