मंज़िल 

भीकम सिंह (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ठोकरों वाली
पगडण्डी 
लगती रही लम्बी 
करना पड़ा इंतज़ार 
सालों-साल। 
 
फिर, मुँह फेरे
खड़े मिले 
सारे राजमार्ग 
दूर ही रही दिल्ली 
लगी ना ताल। 

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