चोका संग्रह ‘कुछ रंग . . .’ से पाँच चोका
भीकम सिंह
1.
आ गया गाँव
खेत की देह पर
बीज धरता
दूब के मोतियों में
गुनगुनाता
दोपहर करता,
एक छाँव है
नीम की, पीपल की,
और मन है
अधूरे काम में, ज्यों
शाम का धुँधलका।
2.
कल, परसों
सरसों के धुँधले
बिंब उभरे
बिके हुए खेतों को
ज्यों मैंने ताका,
धूप से बाण छूटे,
मौन-से खेत
पथराए खड़े रहे
शब्द ना फूटे,
योजनाओं ने ऐसा
खींच दिया है खाका।
3.
कटे ठूँठों में
सुबह -सुबह ही
अपने खेत
कमर कस लेते
कटी फसल
आशंका में झाँकती,
रोज़-रोज़ की
दुर्घटनाएँ जीती,
ओसीले खेत
दाढ़ में भर लेते
बजरी और रेत।
4.
बीता बसंत
तो देह का मोह भी
कम हो गया
मन तैरता रहा
होकर रीता
सरसों के खेतों में,
देखता रहा
वक्रों से घिरा फीता,
कुछ नहीं था
तितलियों का वहाँ,
जहाँ यौवन बीता।
5.
गाँवों के हिस्से
ज़्यादा खेत आए थे
कम के साथ
शहर उदास थे
फिर भी दोनों
सदियों से साथ थे
इस भेद को
सीने पे लादे हुए
शहर आए
गाँव के खसरों पे
पैने फन उठाए।
1 टिप्पणियाँ
-
कुछ रंग... चोका संग्रह की हार्दिक शुभकामनाएँ भाई साहब। और भावपूर्ण चोका प्रकाशित होने की भी।
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