उर्वशी कोई हूर परी अप्सरा नहीं उर में बसी वासना होती 

01-01-2025

उर्वशी कोई हूर परी अप्सरा नहीं उर में बसी वासना होती 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 
उर्वशी कोई हूर परी अप्सरा नहीं 
उर में बसी वासना होती 
वासना उर में वास करती 
जन्म जन्म से वासना हृदय में होती
अंतरात्मा के साथ काम वासना संयुक्त होती! 
 
वासना कोई बुरी चीज़ नहीं 
वासना नहीं होती तो ये दुनिया नहीं होती 
जीव जगत की सृष्टि भी नहीं होती
अकेला ब्रह्म जब पहले पहल हुए वासना विगलित 
ब्रह्म में अभिव्यक्ति की भावना जगी! 
 
ब्रह्म ने ब्रह्मा बनकर जीव जगत की रचना की 
स्वायंभुव मनु शतरूपा शत् शत् रूप में
वैवस्वत मनु श्रद्धा भाव से भव में मानव होकर
आदम हव्वा नूह मनु अब्राहम आदमी 
ब्रह्मा से ब्राह्मणी, अब्राहम से अब्राहमी संस्कृति! 
  
वासना दबाने की चीज़ नहीं, वासना बड़ी बलवती होती 
वासना से हम, वासना के कारण हम, वासना नहीं भ्रम 
वासना है भव बंधन, उमा रमा ब्रह्माणी संग
भवं-भवानी, रमण-रमाणी, ब्रह्मा-ब्रह्माणी महा-संगम! 
 
उर्वशी किसी ऋषि के दिल में दमित वासना की स्थिति 
मेनका मानव मन की काम दशा, घृताचि घायल चित्त 
उर्वशी मेनका घृताचि नहीं है नारी की सशरीर उपस्थिति! 
  
उर्वशी मेनका घृताचि किसी स्वर्ग में नहीं होती
उर्वशी मेनका घृताचि मानव उर मन चित्त में दबी छिपी 
दमित वासना काम दशा मंशा नर नारी की
नारकीय मनोस्थिति विकृत चित्तवृत्ति की अवस्थिति! 
 
मानसिक इच्छा वासना कामना को दबाना ठीक नहीं 
उचित इच्छा वासना कामना चित् में चित्रित जीव की! 
 
उर्वशी उर में बसी रहती, मेनका मन का काम, 
चित्त घेरनेवाली घृताचि जीव जगत की शाश्वत अनुभूति 
दबाने से नहीं दबती दमित वासना बनके उर में 
मन मारके रहती, उर्वशी मेनका घृताचि जब तब उभरती! 

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