कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा

15-09-2024

कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

वो एक कर्ण था अवांछित जाति वर्ण का, 
कर्ण अब नहीं पर जस की तस है व्यथा, 
कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा! 
 
कर्ण मिथकीय या यथार्थ पात्र हो सकता, 
मगर कर्ण कथा की आज भी प्रासंगिकता, 
कर्ण असवर्ण, कर्ण हो सकता नहीं लापता! 
 
वो तलाश में थे एक गुरु के जो ज्ञान दे, 
शिष्य का क्लेश हर ले गुरु द्रोण थे ऐसे, 
मगर द्रोण बँधे थे तत्युगीन व्यवस्था से! 
 
जिन्होंने जाति जानकर इनकार किया था, 
तब निम्न वर्ण वंचित थे ज्ञान प्राप्ति से, 
पढ़ने पढ़ाने शास्त्र ज्ञान शस्त्र धारण से! 
 
एक और महा गुरु मिले जो थे सिरफिरे, 
जो ज्ञान दिए ब्राह्मण जाति समझ कर, 
वो ज्ञान हर लिए निम्न जाति कह कर! 
 
परशु धारण किए विजाति के जान हरते, 
भारत है विश्व में ऐसा देश जहाँ है वर्ण, 
जहाँ एक सा नहीं एकलव्य अर्जुन कर्ण! 
 
कर्ण ने हिलाकर रख दिया रथ पार्थ का, 
जिसके सारथी हरि, वायुपुत्र पताका प्रहरी, 
जबकि वो देह कवच दानी निःस्वार्थ का! 
 
कर्ण नाम अकारण रण और अनबन का, 
कर्ण काम मान सम्मान स्वाभिमान का, 
कर्ण अभियान वर्ण व जाति मिटाने का! 
 
कर्ण क़ुर्बान हो गए जाति दंभ क़हर पर, 
कर्ण ने कान उमेठा वर्ण खोखलेपन पर, 
कर्ण चुनौती बने सामाजिक कुरीति पर! 
 
कर्ण जातिवादी हीनग्रंथि से ऐसे त्रस्त थे, 
कि सम्मान ख़ातिर उठाए अस्त्र-शस्त्र वे, 
मित्रता कर लिए दुर्योधन जैसे कुपात्र से! 
 
कर्ण जातिवादी घृणा से इतने आहत थे
कि दुर्योधन के तुच्छ सम्मान राहत से
झटके में त्याग दिए थे सत्य के रास्ते! 
 
कर्ण वर्ण के कारण भटके महा भट्ट थे, 
अब भी इस वजह से देश धर्म झंझट में, 
धर्मांतरण कर धारण करते लट्ठ हठ में! 
 
हिन्दू एक ऐसा धर्म जिसमें समता नहीं, 
आदमी, आदमी में जन्म लेने के बाद ही, 
भेदभाव होने लगता बदल जाती नियति! 
 
पूरी दुनिया में वर्ग है, अमीर ग़रीब का, 
जो बदलता, आज के ग़रीब कल के धनी, 
आज का धनवान कल निर्धन हो जाता! 
 
मगर यहाँ शूद्र ब्राह्मण होता नहीं कभी, 
ब्राह्मण कभी हो सकता नहीं शूद्र जाति, 
भारत हारा जाति से, आक्रांताओं से नहीं! 
 
भारत में हर बुराई जातियों की वजह से, 
एक जाति, दूसरी जाति से घृणा पालती, 
स्वजाति मिलके भाई भतीजावाद करती! 
 
भारत में अधर्मी के साथ स्वजाति धर्मी, 
भारत में न्याय अन्याय जाति सापेक्षित, 
जाति जाति से, चुंबक सा चिपक जाती! 
 
लाख सद्गुणी कोई, कुछ नहीं किसी के, 
राम-रावण, कृष्ण-कंश एक होते जाति से, 
भारतीय लोकतंत्र असफल जातिवाद से! 

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