दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
विनय कुमार ’विनायक’
दया धर्म का मूल है, दया ही जीवन का सहारा,
जिसके दिल में दया नहीं, वो भटकते मारा-मारा!
दयावान भगवान राम थे, प्रेम है कृष्ण को प्यारा,
बुद्ध करुणा की मूर्ति, महावीर का अहिंसा नारा!
ईसा का धर्म क्षमा था, नबी का मत था भाईचारा,
सतगुरु नानक गोविंद सर्ववंशदानी माँ का दुलारा!
रंग वर्ण बनते हैं धूप छाँव से, सब रंग है न्यारा,
रंग वर्ण नस्ल मत मज़हब से करो नहीं बँटवारा!
आदमी लाल सफ़ेद हरा रंग को कहते हैं तेरा मेरा,
सूट बूट टाई कुर्ता पाजामा टोपी पहन चलते इतरा!
ख़ाली हाथ आया दुनिया में, रो रोकर हाल था बुरा,
ईश्वर अल्लाह गुहार के पूर्व, जाना नहीं था ककहरा!
पता नहीं किसने कहा देव औ’ ख़ुदा को पसंद बकरा,
मंत्र और कलमा पढ़कर रक्त से लाल कर देता धरा!
क्या शक्तिशाली ईश्वर का घर मंदिर मस्जिद देहरा?
फिर क्यों पहरा? क्यों विधर्मी धक्के से गिरते भरभरा?
धर्म नहीं किसी धर्मग्रंथ किताब में, धर्म नहीं जयकारा,
धर्म नहीं पूजा नमाज़, धर्म वही जिसे ज़ेहन में उतारा!
ईश्वर अल्लाह ख़ुदा क्या? जिन्हें आदमी ने ख़ुद सँवारा,
आदमी अगर गूँगा होता तो कैसे कोई रब होता हमारा?
छोड़ो ईश्वर अल्लाह रब का कलरव, सब आदमी से हारा,
ईश्वर अल्लाह को गुहार कर आदमी ने आदमी को मारा!
आदमी हो आदमियत धारण करो, बनो नहीं पशु आवारा,
मानव हो, मानवता ही सबसे बड़ा गुण धर्म है जग सारा!
राम कृष्ण बुद्ध महावीर ईसा नबी गुरु हेतु बनो न हत्यारा,
सारे आराध्य को साथ रखो दिल अंदर बनो सबके हरकारा!
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