कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे? 

01-07-2024

कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे? 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे? 
क्या वाल्मीकि, कण्व, संदीपनी के गुरुकुल जैसे
वन प्रांत में बसे या गुरु परशुराम द्रोण सरीखे
पूर्वाग्रह भावयुक्त गुरुदक्षिणा जीवी आश्रम थे? 
 
या तक्षशिला विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय जैसे, 
जहाँ सवर्ण को शुल्क, निम्न निःशुल्क पढ़ते थे, 
या फिर बुद्ध के निःशुल्क बौद्धमठ महाविहार 
नालंदा, विक्रमशिला, उदन्तपुरी, वज्रासन अनोखे! 
 
हाँ सचमुच में अनोखे विश्वविद्यालय विश्व के, 
नालंदा में दस हज़ार छात्र दो हज़ार शिक्षक के
पठन, पाठन, भोजन, वस्त्र, चिकित्सादि ख़ैराती में, 
बिना भेदभाव किए ही धर्म, वंश, नस्ल, जाति में! 
 
सिर्फ़ देशी नहीं, कोरियाई, चीनी, जापानी, तिब्बती, 
ईरानी, इंडोनेशियाई, तुर्की विदेशी ज्ञान पाते थे, 
ऐसे ज्ञान स्तंभ को खल बख्तियार खिलजी ने 
ग्यारह सौ तिरानबे में अग्नि में झोंक दिए थे! 
 
नालंदा पीठ के नौमंजिला धर्मगूंज पुस्तकालय के 
तीनों हिस्से रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर के
नब्बे लाख पाण्डुलिपियाँ हज़ारों ग्रंथ धू-धू कर के
छह माह तक जले, मरे हज़ारों भिक्षु गण संग में! 
 
हे नालंदा! तुम्हारा पर्याय है ‘ना आलम दा’ यानी
ज्ञान रूपी उपहार पर कोई प्रतिबंध नहीं रखने के, 
जहाँ मनुज को ज्ञान देने, जान बचाने में भेद नहीं, 
वैद्य राहुल श्रीभद्र ने क़ुरान के पन्ने में दवा लेप
ख़ूनी-जुनूनी बख्तियार खिलजी के प्राण बचाए थे! 
 
ऐसे ज्ञान स्थल का उदय सदियों प्रयत्न से हुआ, 
दानी ज्ञानी धर्मप्राण महाजन के नेक नीयत दुआ
मानवता के उत्थान के लिए थी, जिसके नाश से
बख्तियार खिलजी को सारी दुनिया देती बद्दुआ! 
 
कहो नालंदा! चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के
समकालीन चीनी यात्री फाहियान के यात्रा वृत्तांत, 
चार सौ दस ई. में नालंदा विश्वविद्यालय था नहीं, 
तब यह बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र का निर्वाण महि! 
 
हर्षवर्धन काल छह सौ छह से सैंतालीस के बीच में, 
चीनीयात्री ह्वेनसांग ने पाँच वर्ष नालंदा में बिताए, 
शीलभद्र महास्थविर आचार्य से बुद्धत्व शिक्षा पाई, 
ह्वेनसांग अनुसार कुमारगुप्त संस्थापक नालंदा के! 
 
ह्वेनसांग ने कहा ये भूमि बुद्ध को अतिप्रिय थी, 
बोधिसत्व ने राजा के रूप में जन्म लिए थे यहीं, 
जो अनाथ को दान देने के कारण नालंद कहलाए
ये भूमि नालंद के नाम से नालंदा कहलाने लगी! 
 
ओ नालंदा! क्या तुम नालंद नाग के आम्रवन हो? 
जिसे पाँच सौ महासेठों ने दस कोटी स्वर्णमुद्रा में
ख़रीद कर भगवान बुद्ध के नाम समर्पण किए थे, 
जहाँ तथागत ने तीन माह तथ्य विवेचन किए थे! 
 
ये नालंदा बुद्ध के दो प्रधान शिष्य सारिपुत्र और
मौद्गल्यायन की जन्मभूमि नाल से नालंदा बनी, 
ज्ञान स्थली नालंदा के निर्माण की लंबी कथा थी, 
बुद्धनिर्वाण सुन यहीं सारिपुत्र की व्यथा निकली! 
 
गुप्त सम्राट कुमारगुप्त ने चार सौ पचास ई. में, 
विश्व के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की नींव रखी, 
यद्यपि गुप्त शासक विष्णु उपासक थे पर बौद्ध
धर्म की अहिंसा, करुणा, समता के प्रति आस्था थी! 
 
कुमारगुप्त बुधगुप्त तथागतगुप्त नरसिंहगुप्त ने
एक एक कर सात संघाराम व विद्यापीठ बनाए, 
जिसमें सात विहार, आठ प्रकोष्ठ, तीन सौ कक्ष थे, 
फिर हर्ष ने सौ फ़ीट के विहार में पीतल मढ़वाए! 
 
नालंदा महाविहारों के शिखर, गगनचुंबी हुआ करते, 
इसके सभी जलाशयों में सुंदर कमल खिला करते, 
विश्वविद्यालय का महाविहार दो सौ फ़ीट के लंबे, 
इसका परिसर एक मील गुणे आधा मील में फैले! 
 
नालंदा विश्वविद्यालय का रखरखाव भरण-पोषण 
सम्राट हर्षवर्धन के दान में दिए सौ ग्राम से होते, 
जो बढ़ते-बढ़ते चीनी यात्री इत्सिंग अध्ययन काल
छह सौ सत्तर से अस्सी ई. तक दो सौ गाँव हुए थे! 
 
गुप्त काल, हर्ष काल के बाद पाल, सेन काल में
ग्राम भू राजस्व की ये दान व्यवस्था रही बहाल, 
महान दानी हर्ष के पश्चात धर्मपाल पुत्र देवपाल
नालंदा के बड़े संरक्षक थे, नालंदा को रखे सँभाल! 
 
इसी नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र थे हर्षवर्धन, 
धर्मपाल, वसुबंधु, आर्यभट्ट, नागार्जुन और ह्वेनसांग, 
यहाँ भाषा साहित्य, धर्म संस्कृति, इतिहास, विज्ञान, 
खगोलशास्त्र, योग, आयुर्वेद, गणित आदि के ज्ञान! 
 
नालंदा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ढेर विद्यालय थे
सबकी अपनी व्यवस्था थी, सबकी अपनी मुद्रा थी
इस ज्ञानभूमि की तुलना नहीं आज विश्व में कोई, 
यहाँ धर्मग्रंथों, विद्वानों के जलने से माँ शारदे रोई। 

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