ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
विनय कुमार ’विनायक’धन के लेन-देन से धन कभी नहीं बढ़ता है,
मगर विचार आदान-प्रदान से ज्ञान बढ़ता है!
अगर मुझको कोई एक पण अर्पण करता है,
मैं एक पण देता, दोनों को एक पण होता है!
मगर मैंने दिया है तुम्हें कोई एक समाचार,
तुमने एक, दोनों के हो जाते दो दो विचार!
ज्ञान औ धन में कभी भी तुलना नहीं होती,
ज्ञान अतुलनीय, वस्तुएँ तुला में तौली जाती!
कभी एक दूसरे का ज्ञान एक समान नहीं है,
मगर एक दूसरे का धन एक समान सही है!
हर पिता बाँटता धन बेटों को बराबर बराबर,
दो जनों में ज्ञान बराबर बाँट सके ना ईश्वर!
धन नहीं गुण धर्म संस्कार सजीव जीवों का,
ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव-जंतुओं का!
धन अन्न भोजन बिखरा पड़ा इस संसार में,
पर ज्ञान आकार लेता आत्मा के व्यवहार में!
धन को जो जीव जन्तु आत्मा में पकड़े होते,
वैसे जीव हमेशा अमीरी ग़रीबी में जकड़े होते!
आदमी के सिवा कोई जन्तु निर्धन नहीं होते,
आदमी के सिवा कोई जन्तु कृपण नहीं होते!
आदमी के सिवा कोई जीव धनसंग्रही न होते,
आदमी के सिवा कोई जीव धन पे नहीं मरते!
आदमी होके समस्त जीव जन्तुओं के हिस्से,
गटक लेते, किश्त में बाँटने के गढ़ते क़िस्से!
आदमी दानी होने का, झूठा छल प्रपंच करते,
आदमी प्रकृति से हड़पे हुए धन पे अहं करते!
आदमी होके आदमी के हक़ मार लिया करते,
आदमी होके आदमी को धोखे-डर दिया करते!
आदमी आदमी को रंग वर्ण जाति में बाँटकर,
मारते काटते किसी आदमी को ख़ुदा बताकर!
आदमी ने कोई लड़ाई आदमी हित नहीं लड़ी,
आदमी ने सब लड़ाई सदा धन के लिए लड़ी!
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