कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था? 

01-12-2024

कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था? 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था 
जो तुम्हारे पुत्र ने तुम्हारी गर्दन काट दी 
शास्त्र कथन है पूत कपूत हो सकता
मगर माता कुमाता कभी नहीं हो सकती! 
 
यदि ये शास्त्र कथन सही है
तो माता रेणुका कुमाता कभी नहीं हुई होगी 
न कल थी न आज है ना कल होगी
माँ रेणुका तुम्हारे साथ ज़रूर कोई प्रवंचना हुई होगी! 
 
माता रेणुका तुम सूर्यवंशी राजकन्या, वाक्दत्ता थी 
एक हैहयवंशी सम्राट सहस्रार्जुन माहिष्मतीधीष की, 
तुम्हारे पिताश्री के यज्ञ पुरोहित वृद्ध जमदग्नि ने
गोधन स्वर्णधन के साथ तुम दान में माँग ली थी! 
 
तुम्हारे पिताश्री ने मनमसोस कर तुम्हें दान किया 
तुमने भी भावी पति को भुलाकर वृद्ध जमदग्नि को
पति स्वीकार कर उनके पाँच पुत्रों की जननी बनी
जिन्होंने पंचम पुत्र परशुराम से तुम्हारी ग्रीवा कटा दी! 
 
तुम्हारे पति ने तुझपर एक मनगढ़ंत आरोप लगाकर 
कि चित्ररथ गंधर्व की जलक्रीड़ा देख तुम कामासक्त हुई 
ये कोई अपराध नहीं, मानव मन पर एक शंकालु की पाबंदी 
उस वक़्त तुम पाँच युवा पुत्रों की माँ थी पैंसठ वर्षीय वृद्धा होगी
पचासी वर्ष से कम नहीं होगा तुम्हारा अतिवृद्ध पति जमदग्नि! 
 
क्या ये उम्र है एक वेदमन्त्र द्रष्टा भार्गव ब्राह्मण की 
अपनी ब्याहता को लांछित कर पुत्र से वध कराने की? 
पुनः मंत्र से जीवित करने की क्या एक ढकोसला नहीं? 
 
अगर मंत्र से मानव को मारा और जिलाया जा सकता 
तो क्या ज़रूरी था एक बखेड़ा पूत को कपूत बनाने का? 
 
यह सत्य था कि तुम अपने क्रूरकर्मा पुत्र
परशुराम के हाथों मार दी गई 
पर तुम्हारे पुनर्जीवित होने की झूठी कथा 
शास्त्र पुराणों में गढ़ ली गई! 
 
बिना तुम्हारे पति भार्गव जमदग्नि के मरे ही 
तुमसे इक्कीस बार छाती पिटवाना एक भूमिका थी
तुम्हारी पितृ जाति के क्षत्रियों को संहारित करने की! 
 
हे रेणुका! सिर्फ़ तुम नहीं मारी गई
तुम्हारी छोटी बहन वेणुका सत्या की भी माँग उजाड़ी गई
तुम्हारे सपूत परशुराम के हाथों
जिसे तुम्हारे जीवित पति जमदग्नि ने जघन्य पाप कहकर
तुम्हारे घोरकर्मा पुत्र परशुराम को धिक्कारा था—
“हाय राम! परशुराम! तुम बड़े वीर हो परन्तु तुमने व्यर्थ ही
सर्वदेवमय अवध्य नरदेव सहस्रबाहु अर्जुन का वध किया!” 
 
इतना ही नहीं उन्होंने पुत्र परशुराम से आगे कहा था 
“बेटा! हम ब्राह्मण हैं/ क्षमा के कारण हम संसार में पूज्य हैं” 
तो क्या पुत्र परशुराम को क्षमा का महत्त्व बताने वाले 
तुम्हारे पति जमदग्नि तुम्हें क्षमादान नहीं कर सकते थे? 
पुत्र को मातृवध और क्षत्रिय संहार से रोक नहीं सकते थे? 
 
 (राम राम महाबाहोभवान पापम कारषीत्। 
अवधीन्नरदेवं यत् सर्वदेवमयं वृथा॥15/38 
वयं हि ब्राह्मणस्तात क्षमयार्हणता गताः। 
यथा लोकगुरुर्देवः पारमेष्ठय्भगात परम्॥15/39) श्रीमद्भागवत 
 
हे माते रेणुका! तुम्हारा पुत्र इतने से ही संतुष्ट नहीं हुआ 
तुम्हारी बहन के पुत्रों को उसी एक गोहरण के लिए मारा
जो वास्तव में हरी ही नहीं गई थी बल्कि कृतघ्नता थी
उस सहस्त्रार्जुन के प्रति जिन्होंने लाखों गौ दान में दी थी! 
 
इतना ही नहीं तुम्हारी बहन के इक्कीस पीढ़ियों के बेक़ुसूर
बालिग-नाबालिग प्रपौत्रों को संहारा उसी एक गोहरण के लिए
तुम्हारे पुत्र ने वंश नाश कर दिया वीर क्षत्रियों का मगर
तुम्हारा पुत्र परशुराम आज भी अजर-अमर वैष्णव अवतार है? 
 
कितना आश्चर्य है कि भार्गवों के मूलपुरुष जिस भृगु ऋषि ने
विष्णु से घृणावश उनकी छाती में पद प्रहारकर भृगुलता उगायी 
उसी भृगुवंशी परशुराम को शास्त्रों में विष्णुवतार घोषित किया
शस्त्र-शास्त्र जिनके हाथ हो उनके लिए कुछ असंभव नहीं होता! 
 
ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में ईरानी भार्गव थे आक्रांता 
भारतीय अहिंसक प्रजापालक सूर्य-चंद्र-नागवंशी क्षत्रियों का
जिनके वंशज असुर याजक भार्गव शुक्राचार्य और्व थे गुरु अरब का! 
 
ये भार्गव आर्यावर्त आकर गोधन स्वर्ण कन्याहरण के ढूँढ़ते थे बहाने
जमदग्नि के पिता ऋचिक ने एक हज़ार श्यामकर्णी अश्व के बदले 
विश्वामित्र के पिता गाधी से पुत्री सत्यवती का हाथ माँग लिया था 
शर्याति पुत्री सुकन्या का वृद्ध च्यवन से विवाह भी कुछ ऐसा ही था
च्यवन भी ईरानी अहुर माजदापुत्र असुरयाजक भृगुवंशी भार्गव ही था! 
  
भृगु व उनके वंशज भार्गव थे आदित्य विष्णु-सूर्य-मनुवंशी आर्यद्रोही, 
असुरप्रेमी, दानवरक्षी, मनुस्मृतिकार भृगु और पुत्र शुक्राचार्य, च्यवन, 
ऋचिक जमदग्नि थे हैहय पुरोहित दानग्राहक, परशुराम क्षत्रिय संहारक! 
 
यद्यपि कन्या धन नहीं थी, किन्तु धन लोलुपता में 
याचक ब्राह्मणों ने कुलीन राजकन्याओं को धन बना दिया था! 
  
रेणुका के पूर्वकाल में राजकन्याओं की और बुरी हालत थी, 
जब सम्राट ययाति से उनकी सुन्दर कन्या माधवी को 
ब्राह्मण गालव ने दक्षिणा धनार्जन हेतु दान माँग ली थी! 
 
विप्र गालव ने राजकन्या माधवी से विवाह करने के बजाए 
धनार्जन हेतु वृद्ध चार राजाओं को बारी-बारी से वह बेच दी, 
उन राजाओं ने गालव को दो-दो सौ श्यामकर्णी अश्व के बदले
चक्रवर्ती ययाति कन्या माधवी की देह से तबतक खेल किया 
जब तक वो बिनब्याही राजा के एक पुत्र की माँ नहीं हो जाती थी! 
 
तत्कालीन ब्राह्मणों की धनलोलुपता पतनगाथा ढकने के लिए 
सदाचारी हज़ारों गोदानी क्षत्रिय गौहरणकर्ता कहे जाते थे, 
चक्रवर्ती सम्राट सहस्रार्जुन के पूर्ववर्ती महाराज विश्वामित्र को भी 
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने एक कामधेनु गोहरण का दोषी ठहराए थे! 
 
ये लोभी पुरोहित जिन राजाओं से लाखों रत्न धन गौ दान लेते, 
उन्हें साज़िश के तहत एक कामधेनु गौ छीनने का आरोपी बनाते, 
राजा द्वारा कृषि कार्य हेतु वन जलाने के क्रम में गो यानी भूमि 
आश्रम व कृषि हेतु नहीं देने पर आश्रम जलाने का दोषी ठहराते! 
 
ये ब्राह्मण भोले नहीं बल्कि हिंसक शास्त्र व शस्त्रधारी थे 
कई राजाओं के संयुक्त सलाहकार हो आपस में लड़ाते थे 
ख़ुद ये मांसभक्षी होते पर क्षत्रियों को शाकाहारी बनाते थे! 
  
शास्त्र गवाह है श्रोत्रिय ब्राह्मण मांसयुक्त मधुपर्क पीते थे
क्षत्रिय निरामिष मधुपर्कसेवी, वे युद्ध के सिवा अहिंसक थे, 
वैदिक ब्राह्मणधर्म पूर्व सब जैन तीर्थंकर अहिंसक क्षत्रिय थे! 
 
क्षत्रिय तीर्थंकरों का अहिंसावादी जैन धर्म की उद्भावना हुई 
प्रथम मन्वंतर में स्वायंभुव मनुपुत्र प्रियव्रतवंशी ऋषभदेव से, 
जबकि यज्ञ पशुबलिवादी ब्राह्मण धर्मारंभ सातवें मन्वंतर से, 
ये वैवस्वत मनु थे विवश्वान सूर्यपुत्र; पूर्वज आर्य क्षत्रियों के! 
 
अहिंसक क्षत्रिय वंश परम्परा स्वायंभुव मनु से चली 
प्रथम स्वायंभुव मनुपुत्र ऋषभदेव से भरत व भारती 
तब से भारतवासी कहलाने लगे थे क्षत्रिय मनुर्भरती! 
 
क्षत्रियों की परम्परा सातवें मनु तक अविरल रही 
सातवें सूर्यपुत्र वैवस्वत मनुवंशी मानव कश्यपगोत्री 
क्षत्रिय आर्य हो गए सूर्यवंशी चंद्रवंशी व नागवंशी! 
 
आज कश्यपगोत्र है क्षत्रिय से विखंडित सभी जातियों का, 
जबकि भृगु पुलस्त्य अंगिरा गोत्र होता सिर्फ़ ब्राह्मणों का, 
पुलस्त्य भृगु असुर याजक थे आर्यावर्त के क्षत्रियों के द्रोही 
भार्गव परशुराम क्षत्रियहंता, पुलस्त्यवंशी रावण थे आर्यवैरी, 
वशिष्ठ आर्यों के याजक थे मगर क्षत्रिय पतन के आकांक्षी! 
 
वैदिक कालीन अधिकांश याजक थे अज्ञात कुल शील के, 
कहीं प्रकट हो जाते और राज आश्रय पाकर आश्रम चलाते, 
अस्त्र शस्त्र अश्व बेचते या फिर राजपुरोहित पद पा जाते, 
ये स्त्रीविहीन याजक जन स्थानीय स्त्रियों से सम्बन्ध बनाते, 
आज ये ब्राह्मण कहलाते मगर ये ब्राह्मण नारी विहीन थे! 
 
सारे याजक पुरोहितों की उत्पत्ति वृत्तांत रहस्यमय थे, 
अगस्त वशिष्ठ अवैध अप्सरा पुत्र थे, द्रोण द्रोणपात्र से, 
सभी अधमयोनिजा शूद्रा कैवर्त्या अप्सरा से जन्मे थे, 
फिर कुलीनता की दौर चली क्षत्रिय कन्या दान में मिली! 
 
ये स्त्रीविहीन ईरानी याजक बड़े क्रोधी कृतघ्न अभिमानी थे, 
जिनसे कन्यादान लेते उनसे स्नेहपूर्ण रिश्तेदारी नहीं निभाते थे, 
गोधन भूखण्ड पाकर भी राजा से असंतुष्ट रहते शापित करते थे, 
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजा विश्वामित्र तथा भार्गव परशुराम और 
हैहय क्षत्रिय सहस्रार्जुन संघर्ष में ब्राह्मण निष्काम नहीं धनकामी थे!

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में