ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
विनय कुमार ’विनायक’ (शाप शाप सिर्फ़ शाप ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच शाप ही फला फूला)
ऋषि वशिष्ठ उर्वशी के मानस जात पुत्र थे
मित्रावरुण की संतान वे, यज्ञ सत्र में स्तुत्य
मित्र व वरुण ने कुम्भ में रेतस् डाल दिए थे
ऐसे ही ऋषि वशिष्ठ उत्पन्न हुए और पिता
वरुण से बात कही, दरिद्रतावश अनुष्ठान नहीं
कर पाने की, सुख समृद्धि गृह की याचना की!
“उतासि मैत्रावरुणो वशिष्ठोर्वश्या ब्रह्मन् मनसोऽधि जातः
सत्रे ह जाताविषिता नमोभिः कुम्भे रेतः सिषिचतु समानम्।”
–(ऋग्वेद 7/33-89)
ऋषि वशिष्ठ विशिष्ट थे, वैवस्वत मनुपुत्र इक्ष्वाकु के
कुल पुरोहित बन गए, जब इक्ष्वाकु पुत्र राजा निमि थे
ऋषि गौतम आश्रम के निकट एक नगर बसाया वैजयंती
पुरोहित वशिष्ठ को यज्ञ आरंभ हेतु किया आमंत्रित वे!
ऋषि वशिष्ठ ने कहा पहले मिला बुलावा देवराज इन्द्र से
मेरे आने की करें प्रतीक्षा, प्रतीक्षा घड़ी पाँच हज़ार वर्ष की,
राजा निमि ने ऋषि गौतम से यज्ञ करा लिया, बस क्या?
वशिष्ठ ने निमि को अभिशाप दे डाला शरीरपात होने का!
निमि भी क्या कम थे? ऋषि को भी प्रति-शाप दिया वैसा
फिर क्या? दोनों विदेह होकर भटकने लगे हवा-हवाई जैसा
पुनः शरीर प्राप्ति की इच्छा से वशिष्ठ गए पास ब्रह्मा के
ब्रह्मा ने कहा वशिष्ठ आत्मा को, प्रवेश करो वरुण रेतस् में!
एवमस्तु कहकर वशिष्ठ गए वरुणलोक, जहाँ वरुण उर्वशी को
समागम की चाह लिए बैठे थे कि उर्वशी बोली वे मित्रदेव की
वरी हुई, ये देह उनकी, आप उर में हैं, कुंभ में वीर्याधान करें,
तदंतर कुक्षि कुंभ से जन्म लिए अगस्त्य व वशिष्ठ महर्षि दो!
अब देह धारण की बारी थी राजा निमि की, यज्ञ समाप्ति पर
भृगु व ऋषियों ने निमि के जीवात्मा से कहा राजन माँगो वर
तुम्हारे जीव-चैतन्य आत्मा को कहाँ स्थापित करूँ, क्या देह में?
निमि ने कहा समस्त प्राणियों के नेत्रों में निमिष में सब देखूँ!
फिर ऋषियों ने निमि देह को अरणि से मथ दिया, मिथि निकले,
इस अद्भुत जन्म के कारण जनक कहलाए, जीव रहित देह से
जन्म लेने से विदेह वैदेह बने, ऐसे ही मिथि से मैथिल वंश चले,
वैदेही सीता हुई इसी इक्ष्वाकु निमि मिथि मैथिल जनक कुल में!
‘गणिक गर्भ संभूतो वशिष्ठश्च महामुनि:’ बने संस्कार तपोबल से
‘जातो व्यासस्तु कैवर्त्या: श्वपाक्यस्तु पराशरः’ हुए वाशिष्ठ शक्ति से
‘बहबो अन्येनऽपि विप्रा पूर्वम अद्विजा’ पर ये रीति बदली छल से
ब्राह्मण जन्म लेने लगे मुख से, मगर क्षत्रियादि हाथ पैर जाँघ से!
ये स्थिति तभी आ गई जब ऋग्वैदिक वशिष्ठ विश्वामित्र काल था
ब्राह्मण के सामने क्षत्रिय बदहाल था क्षत्रिय वन-वन भटक रहा था
मगर ब्राह्मणों का वन में गोधन, छप्पनभोग, सैन्यबल, टकसाल था
विश्वामित्र जब आखेट कर आए वशिष्ठ आश्रम, प्यास से बेहाल था!
ऋषि आश्रम में सैनिक समेत राजन को छप्पन भोग मिला भोजन
विश्वामित्र ने धन वैभव का रहस्य पूछा तो उत्तर मिला एक गोधन
कामधेनु नंदिनी प्रदान करती, सभी सुख सुविधा आवश्यक संसाधन,
राजा ने कहा राज हित एक करोड़ गौ के बदले कामधेनु दें श्रीमान,
वशिष्ठ ने राजा के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, राजा ने किया गोहरण!
वशिष्ठ ने हुंकार भरा नंदिनी को कहा शबला शक यवन पह्लव बर्बर
निज अंग प्रदेश से उत्पन्न कर इस गाधिपुत्र क्षत्रिय पर आक्रमण कर
गोधन ने पूँछ से पह्लव, योनि से यवन, थन से द्रविड़, गोबर से शबर
पार्श्व से पौण्ड्र को निकाल विश्वरथ को पराजित किया उनके बल पर!
“तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभिः सासृजत् तदा।
तस्या हुंभारवोत्सृष्टाः पह्लवाः शतशो नृप॥18/54”
(वशिष्ठ के आदेश पर गौ ने हुंकार कर सैकड़ों पह्लव वीरों को जन्म दिया)
“पह्लवान् नाशायमास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्या पह्लवांशतशतस्तदा॥20/54
भूय एवासृजद् घोरान् शकान् यवनमिश्रितान्।
तैरासीत् संवृता भूमिः शकैर्यवनमिश्रितैः॥21/54”
(विश्वामित्र द्वारा पह्लव के मारे जाने पर गौ ने यवन मिश्रित
शक जाति के वीरों को पैदा किया जिससे वहाँ की भूमि भर गई)
“तस्या हुंकारतो जाताः काम्बोजा रविसंनिभाः।
ऊधसश्चाथ सम्भूता बर्बराः शस्त्रपाणयः॥2/55”
(उस गौ के हुंकार से काम्बोज, थन से शस्त्र धारी बर्बर हुए)
“योनिदेशाच्च यवनाः शकृददेशाच्छकाः स्मृताः।
रोमकूपेषु म्लेच्छाश्च हारिताः सकिरातकाः॥3/55”
(बालकाण्ड वाल्मीकीय रामायण)
(गौ की योनि से यवन शकृ मलद्वार से शक
रोमकूप से म्लेच्छ, हारीत व किरात प्रकट हुए)
“असृजत् पह्लवान् पुच्छल प्रस्रवाद् द्रविड़़ाञ्कान्।
योनिदेशाच्च यवनान् शकृतः शबरान् बहून्। 36
मूत्रतश्चासृजत् काश्चिच्छबरांश्चैव पार्श्वतः।
पौण्ड्रान् किरातान् यवनान् सिंहलान् बर्बरान् खसान्
चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्।
ससर्ज फेनतः सा गौम्ल्र्रेच्छान् बहुविधानपि॥38 (आदिपर्व महाभारत)”
ये आख्यान नहीं कपोलकल्पित, वाल्मीकि रामायण, महाभारत उद्धरित,
तो क्या ये ईरानी पह्लव शक सैनिक थे वशिष्ठाश्रम में संपोषित रक्षित?
तो क्या वरुण ही ईरानी अहूर माजदा थे, ये वशिष्ठ भृगु जिनके पुत्र थे?
क्या काश्यप मनु के सूर्य चन्द्र नागवंशी क्षत्रियों के याजक बन आए थे?
अंततः ब्रह्मा पुत्र ब्राह्मण वशिष्ठ से मनु पुत्र क्षत्रिय विश्वामित्र गए हार,
आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, ऐन्द्रास्त्र, यमास्त्र, वायव्यास्त्र, पाशुपतास्त्र चला कर,
‘धिग् बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजोबलं बलम्’ कहकर राजपाट धन त्याग कर,
चले मनुपुत्र तुच्छ मानव से ब्रह्मापुत्र ब्राह्मण बनने, ब्रह्मा का तप करने!
मगर ब्रह्मा ने भी छलकर ब्रह्मर्षि के बदले राजर्षि कहकर लिए फुसला,
सप्त प्रकार के ऋषियों; ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि परमर्षि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि से
कनिष्ठ राजर्षि कहलाकर कौन संतुष्ट होगा भला, फिर से तप करने चला,
इसी बीच इक्ष्वाकुवंशी एक राजा सत्यव्रत राजर्षि विश्वामित्र से आ मिला!
सत्यव्रत; यथा नाम तथा काम सत्यवादी, प्रजापालक, हरिश्चन्द्र का पिता,
जीते जी पुत्र को राजपद देकर यज्ञ करके सशरीर स्वर्ग जाना चाहता था,
पर पुरोहित वशिष्ठ यज्ञ कराने से इनकार कर गए, गुरुपुत्र भी मुकर गए,
दूसरे को याजक बनाना सुनकर गुरुपुत्र शक्ति ने शाप दे चांडाल कर दिए!
राजर्षि विश्वामित्र ने यज्ञ कराकर सत्यव्रत को सशरीर स्वर्गलोक भेज दिए,
मगर इंद्रदेव ने गुरु ब्राह्मण से शापित चांडाल राजा को धकेल वापस किए,
विश्वामित्र ने तप से उन्हें गिरने नहीं दिए, तब से वे त्रिशंकु सा लटक गए,
त्रिशंकु के खुले मुख से इतनी लार गिरी कि एक नदी कर्मनाशा बहने लगी!
एक वाक़या और भी वशिष्ठ पुत्र शक्ति का राजा को अभिशापित करने का,
एक इक्ष्वाकुवंशी वयोवृद्ध राजन कल्माषपाद संकीर्ण मार्ग से गुज़र रहा था
कि वशिष्ठ पुत्र शक्ति बीच मार्ग में खड़ा होकर राजा से करने लगा बखेड़ा
कि ये शास्त्र सम्मत है ब्राह्मण को पहले मार्ग मिले चाहे हो छोटा या बड़ा!
राजा निरुपाय थे रथ हटा ना सके मार्ग बीच खड़े शक्ति को मार दिए कोड़ा,
हठी बटुक शक्ति बिलबिला उठे, राजा को शाप दिए नरभक्षी राक्षस होने का,
फिर क्या? राजा नरभक्षी हो गए, आव न ताव देखा, शक्ति को खा गए चबा,
विश्वामित्र वहीं कहीं थे, उन्हें सौ पुत्रों का मृत्युशोक था, मिल गया उन्हें मौक़ा!
राजर्षि विश्वामित्र ने नरभक्षी कल्माषपाद में एक राक्षस को प्रविष्ट करा दिए,
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के सैकड़ो पुत्रों को राक्षसराज कल्माषपाद के शिकार बना दिए,
क्षात्रबल से भले बड़ा ब्रह्मबल होता होगा, लेकिन पुत्रशोक से सब निर्बल होता
वशिष्ठ के शक यवन पह्लव चीन हूण बर्बर पे विश्वामित्र का राक्षस भारी पड़ा!
पुत्र शोक में वशिष्ठ ने आत्महत्या का प्रयास किए, कभी मेरु शिखर से कूदे,
कभी आग में झुलसे, कभी समुद्र में शिला बाँध उतरे, फिर भी नहीं मर सके,
पाश बाँधकर एक नदी में डूबे, पर विपाश हो गए वो नदी विपाशा व्यास हुई,
फिर दूसरी नदी धार में गिरे, नदी शत धार में बंटकर शतद्रु सतलज हो गई!
अंततः बारह वर्ष भटक कर वशिष्ठ आश्रम लौटे, अदृश्यंती वन कन्या मिली
और बोली मैं आपके पुत्र शक्ति की अनाथ पत्नी अदृश्यंती हूँ बारह साल से
आपके पौत्र को अपने गर्भ में पाल रही, वेदाध्वनि तो सुनिए शक्ति लाल से,
अब तो वशिष्ठ की मरने की इच्छा यानी परासु मिटने लगी हुए निहाल से!
परासु से पुनर्जीवन का उत्साह दिया जिस बालक ने उसकी संज्ञा हुई पराशर,
इतना बोलकर चले वशिष्ठ आश्रम के अंदर कि टूट पड़ा कल्माषपाद का क़हर,
अब तो वशिष्ठ निरुपाय होकर कमंडल जल छिड़के, निकाला राक्षस को बाहर,
बिहार बक्सर सिद्धाश्रम के राजर्षि विश्वामित्र को मान दिए ब्रह्मर्षि कह कर!
ब्राह्मण के शाप की और कथा है राक्षस से राजा हो घर लौटे कल्माषपाद की,
अभी और एक शाप की व्यथा है, उनकी पत्नी संग दाम्पत्य शक्ति शापित थी
अनजाने जब वे क्षत्रिय से शापित राक्षस हो गए, एक काम विह्वल ब्राह्मणी के
पति को वे खा गए, ब्राह्मणी ने शाप दिया तेरा वंश चलेगा शक्ति के पिता से!
अस्तु राजा कल्माषपाद आदर सहित ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को रनिवास लेकर गए थे
निज वंश चलाने की आशा में अपनी धर्मपत्नी को सौंप दिए शाप के कारण से
वशिष्ठ ने नियोग के बहाने, संभोग किया पुत्रार्थी राजा कल्माषपाद की रानी से
वशिष्ठ शापमोची, रानी ने लज्जा से गर्भ में पत्थर मार लिया, पुत्र अश्मक जन्मे,
शाप शाप सिर्फ़ शाप ब्राह्मणों और क्षत्रियों के मध्य अभिशाप ही फले फूले थे!
विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101