मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
विनय कुमार ’विनायक’
मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
क्योंकि ईश्वर मनुष्य को मनुष्य नहीं पशु रूप में जन्म देता!
गाय को गौ भवः कुत्ता को श्वान भवः क्यों नहीं कहा जाता?
क्योंकि गाय भैंस घोड़ा कुत्ता पशु रूप में जन्मा, पशु ही रहता!
अगर मनुष्य को मनुष्य बनाना है तो सदाचार सिखलाना होता,
सदाचार हीन साक्षर मनुष्य भी राक्षस के सिवा कुछ नहीं होता!
आचारहीन शिक्षा से मनुज कुछ और अधिक हिंस्र पशु हो जाता,
सदाचार आचरण सिखाने वाले प्रथम आचार्य माँ द्वितीय पिता!
मनुस्मृति अध्याय द्वितीय श्लोक एक सौ पैंतालीसवाँ बतलाता
‘उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता सहस्त्रं तु पितृन्माता
गौरवेणातिरिच्यते’ मानव शिशु के लिए दस उपाचार्य से उच्चतर
एक आचार्य, सौ आचार्य से बड़ा पिता, हज़ार पिता से ऊपर माता!
माता ही कोख से आँचल तक में सिखाती दया ममता मानवता,
पिता ही आचार विचार संस्कार सदाचार व्यवहार की शिक्षा देता!
आरंभिक शिक्षा उपाचार्य, विशिष्ट पेशेवर ज्ञान आचार्य से मिलता,
माता पिता के साथ सद्गुरु की शिक्षा आदमी को इंसान बनाता!
माँ की शिक्षा पिता नहीं दे पाता, पिता की शिक्षा माँ के पास नहीं,
माता पिता में से किसी की शिक्षा ना मिले तो शिक्षा अधूरी होती,
सिर्फ़ माँ की शिक्षा से संतान सत्य असत्य में भेद नहीं कर पाती,
अकेली माँ की शिक्षा संतान को अभिमन्यु और बर्बरीक बना देती!
अभिमन्यु माँ की कोख में पिता के संपूर्ण ज्ञान को सीख ना सका,
रणभूमि में कूद तो गया मगर पिता की पूरी शिक्षा बिना अधूरा था,
शस्त्रहीन होते ही मातृसम कोमल बालक गया अकबका, मारा गया,
बर्बरीक को शिक्षा दादी हिडिम्बा ने दी पक्षधर होने की निर्बल का!
बर्बरीक को न्याय अन्याय पीड़ित पीड़क में भेद समझ नहीं आया,
बर्बरीक ने कृष्ण से कहा पहले अपने निर्बल पितृ पक्ष से लड़ कर
सबल कौरव को निर्बल करूँगा, फिर बलहीन कौरव पक्ष में जा कर
पाण्डव पक्ष को मारूँगा, ऐसे में बर्बरीक नज़रिया सृष्टि संहारक था!
केवल राम राम रटनेवाले तोते को इंसान नहीं बनाया जा सकता,
बिना तर्क-वितर्क सोच-विचार आचार-संस्कार का ज्ञान बेकार होता!
संस्कारहीन महाज्ञानी-विज्ञानी कुटिलमति स्वार्थी भ्रष्टाचारी होता,
लूटपाट बलात्कार हिंसा आतंक मचानेवाला असभ्य अज्ञानी होता!
रावण भी तो आचारहीन पंडित था, अंगुलीमाल तक्षशिला में पढ़ा था,
दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य देवगुरु वृहस्पति से अधिक बढ़ा चढ़ा था,
मृतसंजीवनी विद्या ज्ञाता शिवलिंगोपासक नाम उसना और्व काव्या,
स्वनाम से बसाए अरबदेश काबा, बन गए पश्चिम का ख़ुदा शुक्रिया!
आरंभ से सकारात्मक औ’ नकारात्मक शक्ति की उपासना होती रही,
आरंभ से शिव पूजा दैवीय व कापालिक अघोरी पद्धति से होती रही,
शिव ही शव है, शिव ही रब है शिवलिंग उपासना पाशुपत पंथ विधि,
आरंभ से ही शैव शाक्त विष्णु उपासक वैष्णव आपस में रहे हैं वैरी!
संस्कारहीन मानव खाद्य अखाद्य रक्त मांस मदिरा सर्वभक्षी होता,
ये मानव और मानवेतर प्राणी की बेवजह नृशंस हत्या कर डालता!
जबकि शाकाहारी पशु रक्त मांस नहीं खाता, भूखा प्यासा मर जाता,
मांसभक्षी पशु भूख होने पर शिकार करता बाक़ी समय उदार रहता!
आज आदमी मज़हब के नाम पर आपस में बर्बर बलवाई होने लगा,
ईश्वर अल्लाह ख़ुदा रब के नाम पर आदमी क्रूर व कसाई होने लगा!
आज इंसान धार्मिक भेदभाव के कारण एहसान फ़रामोश होने लगा,
एक दूसरे के ईश की ईश निंदा कर आदमी ख़ुद का होश खोने लगा!
वक़्त की ज़रूरत है कि शैव शाक्त वैष्णव में हो सामंजस्य स्थापित,
माता बने संपूर्ण शक्ति स्वरूपा त्रिदेवी सरस्वती लक्ष्मी और भवानी,
पिता बने विष्णु सा पालक वैष्णव राम कृष्ण बुद्ध महावीर वीतरागी,
गुरु बने शिव सा पशुपति जगत कल्याणकारी नानक गोविंद वरदानी!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आदमी अगर दुःखी है तो स्वविचार व मन से
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
- नज़्म
- ऐतिहासिक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-