सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
विनय कुमार ’विनायक’
सबके अपने अपने राम, अपने राम को पहचान लो,
मरा मरा पुकार करने से वाल्मीकि को मिले राम जो,
वर्णभेद मर्यादाबंधन से परे नहीं वाल्मीकि के राम वो!
वाल्मीकि के राम ने गुरु वशिष्ठ की आज्ञा मानी थी,
शूद्रमुनि शंबूकवध करना मर्यादा पुरुषोत्तम ने ठानी थी
धर्म विरुद्ध शूद्र तप से विप्र शिशु की मौत आनी थी!
वाल्मीकि के राम ने खेंची असि शूद्र की ग्रीवा उड़ा दी,
तत्काल काल मुख से वापस लौटी ब्राह्मण की संतति,
मगर भवभूति के राम को थी शूद्र मुनि से सहानुभूति!
उत्तररामचरितम के राम ने जब शंबूक पर तानी तलवार,
तो गर्भवती सीता को त्यागने वाले दाएँ हाथ से कहा ये
भवभूति के राम ने धिक्कार तुझे करुणा से क्या दरकार?
राम ने किए राम सा काम विप्र शिशु में लौट आई जान,
शंबूक वध से बहुत अधिक व्यथित हुए भवभूति के राम,
सीता शंबूक के सम्मान से हो भगवान राम की पहचान!
वाल्मीकि के राम ने सीता के उद्धार हेतु युद्ध नहीं किए
बल्कि अपने वंश सम्मान के वास्ते रावण का संहार किए
रावण अंक-कलंकिता, दुष्ट दृष्टि दूषिता सीता को कह दिए!
रावणाङ्कपरिक्लिष्टां दृष्टां दुष्टेन चक्षुषा।
कथं त्वां पुनरादद्यां कुलं व्यपदिशन्महत्’॥
यानी रावण ने तुम्हें गोद में बिठाया, दुष्ट दृष्टि डाली
ऐसे में तुम्हें कौन कुलीन ग्रहण करे, जहाँ चाह जाओ!
तो क्या वाल्मीकि के राम ने इतना कह कर सीता को
परित्याग दिया? या फिर सीता की अग्नि परीक्षा लेकर
राम ने जन आशंका का समाधान के लिए ऐसा किया?
बात वही थी सीता के बिना राम की ज़िन्दगी अधूरी थी
मगर जन अफ़वाह जन मन से मिटाने की मजबूरी थी
अग्निपरीक्षा के बाद सीता भू में, राम ने जलसमाधि ली!
महाभारत रामोपाख्यान के राम ने सीता को कहा सीधे
मेरा उद्देश्य सिद्ध हुआ तुम सच्चरित्र या दुश्चरित्र हो
मैं तुम्हें नहीं रख सकता तुम कुत्ते के चाटे घी जैसे हो!
‘सुवृत्तामसुवृत्तामं वाप्यहं त्वामद्य मैथिलि
नोत्सहे परिभोगाय श्वावलीढं हविर्यथा’
(वनपर्व अध्याय 291/13)
राम कहते मैथिली तुम्हारा आचार विचार शुद्ध हो या अशुद्ध
तुम मेरे लिए वैसे ही अनुपयोगी हो जैसे कुत्ते का चाटा हविष्य
अंततः वायु अग्नि वरुण ब्रह्मा की साक्षी से सीता हुई स्वीकृत!
जिस मर्यादा रक्षण के कारण सीता का हुआ निष्कासन,
उसी मर्यादा रक्षण से जुड़ा हुआ है शूद्र हत्या का प्रकरण,
उसी मर्यादा से सबने अपने राम को बाँधा मर्यादा बंधन!
‘वही राम दशरथ घर डोले, वही राम घट घट में बोले,
वही राम त्रिभुवन में न्यारा, वही राम ये जगत पसारा’
कबीर के राम सार्वभौमिक सभी प्राणी मात्र का सहारा!
तुलसी के राम ‘विप्र धेनु सुर संत हित’ अवतार लिए,
राम ने ‘मोही न सोहाइ ब्रह्मकुल द्रोही’ स्वीकार किए,
तुलसी ने विप्र निंदक को काक होने का शाप दे दिए!
वाल्मीकि के पुरुषोत्तम राम तुलसी के भगवान हो गए,
राम मर्यादा में ऐसे बँधे कि सीता तक को त्याग दिए,
तुलसी के राम ढोल गँवार शूद्र पशु नारी को ताड़ते थे!
वाल्मीकि कृति मादा क्रौंच पक्षी के करुण विलाप प्रेरित,
तुलसी के राम वर्णश्रेष्ठता जातिवादी दुर्भाव से संपोषित,
तुलसी मानस ब्राह्मणी भेदभाव नारी विलगाव से निसृत!
वाल्मीकि ने राम को शबरी का जूठा बेर नहीं खिलाया,
तुलसी ने राम को शबरी का जूठा बेर खाने से बचाया,
सुर ने सबसे पूर्व राम को शबरी का जूठा बेर खिलाया!
विडम्बना है कि हर समय में राम का हुआ वस्तुकरण,
जिसने जैसा चाहा वैसा कर दिया रामचरित्र का चित्रण,
राम का जीवन सबको ख़ुश नहीं कर पाने का उदाहरण!
राम ने पिता की अनचाही आज्ञा से वन जाना स्वीकारा
मरणासन्न पिता ने इच्छा बदली लौट आने भेजा हरकारा
राम न लौटे पिता के नए फ़रमान पे, क्या करते बेचारा?
जिस राम ने निषादराज को सुहृदय मित्र सा गले लगाया,
वानर रीछ गिद्ध शबरी को भाई पिता माँ सा मान दिया
क्या वे किसी वर्णविहिन तपी शंबूक की हत्या कर सकते?
जिस राम ने अज्ञात कुल शील की भूमि कन्या सीता से
विवाह रचाया बिना अतीत पता लगाया, बेइंतहा प्यार किया,
वे राम क्या गर्भवती स्वधर्मिणी को परित्याग कर सकते?
ये तो समय समय पर राम चरित्र चित्रण कर्ताओं की ही
कारिस्तानी या रचना में घालमेल और मनमानी हो सकती
मिथकीय रचनाओं में प्रक्षिप्तांश से आस्था कमज़ोर होती!
ऐसी स्थिति में समय की माँग है सही तथ्य की पड़ताल,
शंबूक को राम द्वारा संहारित शूद्र कहना है ग़लत ख़्याल,
शंबूक शूर्पनखा पुत्र रावण भाँजा रक्ष संस्कृति का मशाल!
शंबूक रावण का रक्ष संस्कृति आर्यावर्त में फैला रहा था,
अवध के दण्डकारण्य में लंका का उपनिवेश बना रहा था,
वैदिक यज्ञवादी आर्यों के बीच लिंग पूजन चला रहा था!
शंबूक चन्द्रहास खड्ग प्राप्ति हेतु कर रहा था अनुसंधान,
लक्ष्मण ने किया शंबूक वध जो श्रीराम का जय अभियान,
पुत्र वध कारण लड़ने आई शूर्पनखा का काटा नाक कान!
राम द्वारा नारी की नाक कटाना जायज़ या नाजायज़?
पर रावण ने राम माता कौशल्या का किया था अपहरण,
शंबूक वध शूर्पनखा अपमान था पूर्व रंजिश का परिणाम!
रावण ने शूर्पनखा के अपमान के बदले सीता हरण किया,
रावण आर्यावर्त के देव मानव वनवासी का शत्रु घुसपैठिया,
आर्यावर्त से रावण का उपनिवेश मिटाना लक्ष्य श्रीराम का!
–-विनय कुमार विनायक