मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है

01-10-2023

मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है, 
मैं जिस गोद में खेला हूँ उसका अभिनंदन है! 
 
जिसने ये तन दिया उस माँ को मेरा नमन है, 
जिस पिता का मैं पुण्य फला उनका वन्दन है! 
 
इस मिट्टी को मेरे नाम किया जिस ईश्वर ने
उनकी शान में समर्पित मेरा संपूर्ण जीवन है! 
 
मूक-बधिर, अंधा-लँगड़ा बना देना उनके बस में, 
उन्हें कोटिशः प्रणाम, जिनका दान चंगा तन है! 
 
आया इस भू पर असहाय अकेले रोते कलपते
स्वागत में देखा माँ पिता मित्र कुटुम्ब धन है! 
 
कहने को सब माया है, बेगानी सब काया है, 
किन्तु इतने इंतज़ाम किए जिसने वे कौन हैं? 
 
सृष्टि के आरम्भ से यह रहस्य है बना हुआ, 
खोज पा लेना उनको सबसे बड़ा अन्वेषण है! 
 
अब तक खोजे हैं जितने वो यहीं उपलब्ध थे, 
अब भी जिसे खोजना बाक़ी वो अपनापन है! 
 
ईश्वर, रब, ख़ुदा, भगवान विविध नाम हैं उनके, 
ये तो सिर्फ़ उस अप्राप्ति का सीमा बंधन है! 
 
ईश्वर व ईश्वर की संज्ञा है भाषाई अभिव्यक्ति, 
उस अदृश्य, परमसत्ता का संदेश तो अमन है! 
 
ये मेरा अपना, वो पराया, मन का ये वहम है, 
ना कोई अंत्यज, ना ब्राह्मण, ना ही दुश्मन है! 
 
ना कोई हिन्दू, ना मुस्लिम, नहीं क्रिश्चियन है, 
ये धर्मभाई, वो बिरादर, मज़हबी खोखलापन है! 
 
मिट्टी का खिलौना है, ये बम, बारूद, मिसाइल, 
मत इतराओ आयुधों पर, ये काग़ज़ी ईंधन है! 
 
पशु अच्छे मानव से जिसमें धर्म, रंग-भेद नहीं, 
अलग-अलग धर्म-दर्शन कहना, मानवी भ्रम है! 
 
खोजें, ईजाद करें, अन्वेषण करें, इन्वेंशन करें, 
अपना इष्ट जिनका नाम अपनापन है, अमन है! 
 
जिसे खोज नहीं पाया कोई पंडित, पोप, पैग़म्बर, 
जो सिर्फ़ आपके अंतर्मन में सदियों से दफ़न है! 
 
धारण कर कभी गेरुआ कभी सफ़ेद, कभी कंचन, 
कभी शेरवानी वसन तन पे सबके सब कफ़न है! 
 
जन्मे कितने सिकंदर, हिटलर, ग़ज़नवी, तैमूरलंग, 
लँगड़े लूले नंगे बदन, छोड़ गए जो, नंगा तन है! 
 
कैसी व्यवस्था है उनकी ना ताला ना संदूक-बंदूक, 
अंततः ले जा पाता नहीं कोई एक मिट्टी कण है! 
 
आवाज़ दे भेजा जिसने बेआवाज़ ले जाते, क्या नहीं
ये इच्छा, वासना, कामना मानवाधिकार का दमन है? 
 
अंत में एक और भंगिमा छोड़ जाती मानव जाति, 
पशु से परे मुख पे वो गहरी वेदना या संतोषम है! 

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