मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना 

15-08-2022

मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 211, अगस्त द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैं चाहता हूँ
एक ऐसी कविता लिखना
जिसमें परम्परा गान न हो
किसी संस्कृति पुरुष का नाम न हो
जो पूरी तरह से हो सेकुलर
और समकालीन भी! 
 
मैं चाहता हूँ
एक वैसी कविता लिखना
जिसमें चिंता हो आज के 
वृद्ध-उपेक्षित-सेवानिवृत्त माता-पिता की
जिसे पढ़ूँगा उस सेमिनार में
कि कितने ज़रूरी/कितने त्याज्य हैं
आज के वरिष्ठ नागरिक! 
 
मैं लिखूँगा नहीं
मातृ देवो भव:/पितृ देवो भव: जैसे
आउट डेटेड स्लोगन
बल्कि लिखूँगा माँ मम्मी/पिता डैड हो गए! 
 
मैं हरगिज़ नहीं लिखूँगा
कि मातृ इच्छा/पितृ आदेश से
किसी पुत्र ने त्याग दिया था घर-द्वार-राजपाट
कि अंधे माँ-पिता को कंधे पर लेकर
तीर्थ कराता था एक बेटा! 
 
कि किसी पुत्र ने पिता का वार्धक्य लेकर
असमय वृद्ध हो जाना स्वीकार किया था! 
 
कि कोई बेटा पितृ सुख-भोग के ख़ातिर
शपथ लेकर आजीवन कुँवारा रह गया था! 
 
मैं लिखूँगा कि कैसे आज के बेटे 
नौकरी की चाह में नौकरीशुदा बाप को 
गला घोंटकर मार देते या बाध्य कर देते मरने को! 
 
कि बीबी के कहने पर बूढ़ी माँ को कैसे दुत्कारते
मुझे मालूम नहीं अनुकंपा बहाली के लिए
पिता की हत्या और पत्नी की ख़ुशी के लिए
माँ को थप्पड़ मारना कहाँ की परम्परा है! 
 
या वृद्ध लाचार माँ-बाप को 
वृद्धाश्रम में डाल देना कहाँ का धर्म है! 
 
कि वर्जित है वह ज्ञान-
‘गुरु ईश्वर की मूर्ति! 
पिता ब्रह्मा का रुप/माता धरती स्वरुपा! 
और भाई-बहन अपनी ही मूर्ति है . . .!’ 
ये पढ़ा नहीं मैंने मनुस्मृति में!

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