आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर 

01-07-2023

आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


ये रिश्ता है अपनापन और इंसानियत का, 
ये रिश्ता है आत्मीयता और रूहानियत का! 
इंसान हो इंसान से ख़ुशी ख़ुशी गले मिलो, 
चाहे मानते हो किसी भी धर्म मज़हब को! 
 
रूह सभी जीव जन्तुओं की एक जैसी होती, 
आत्मा सबकी एक परमात्मा से ही निकली! 
मानव शरीर को पाना आत्मा की उपलब्धि, 
मानव देही आत्मा सचेत होती पाओ मुक्ति! 
 
कोई इंसान अपना धार्मिक चिह्न प्रतीक लेकर, 
गर्भ से आता नहीं जन्म के साथ में जीवन भर! 
विधाता कोई धार्मिक भेद करता नहीं सृजन में, 
कोई कृत्रिम भेद से खोट क्यों पाल बैठे मन में? 
  
हिन्दू और मुसलमान होते हैं सब एक समान, 
जन्म देनेवाले एक ही होता है सबके भगवान! 
तिलक उपनयन खतना व वपतिस्मा ग्रहणकर 
इस क़ुदरती जहाँ में कोई आता नहीं है नश्वर! 
 
ये रस्म-रिवाज़, रहन-सहन अलगाव हुआ हाल से, 
ये सारे वस्त्र लिबास पहनावा विलगाव है हाल से, 
ये सारे धार्मिक आडंबर अलगाव बढ़ गए हाल से! 
 
कुछ लोग कोहराम मचाने में माहिर हो गए, 
कुछ तो खुलेआम धमकाने में शातिर हो गए! 
त्याग दो ऐसे जाहिलाना मत विचारधारा को, 
जो इंसानियत के विरुद्ध भड़काने में लगे हो! 
 
मिटा दो चेहरे से क्रूरता की सारी निशानी, 
जो मानवता को डराने धमकाने में लगे हो! 
करो नहीं अपने ईश्वर ख़ुदा रब से बेईमानी, 
क्यों हुज़ूर पर प्रश्न चिह्न लगाने लगे हो? 
 
उगने दो सूरत में क़ुदरती मासूमियत, 
बन जाओ दया ममता करुणा की मूरत! 
बन जाओ समाज सुधारक शख़्सियत, 
मिटाओ मानवीय भेदभाव और नफ़रत! 
 
पापी नेता के बयान पर हिंसा जायज़ न कर, 
कहो नहीं अगर मगर मानव रक्त बहाने पर! 
आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर, 
ईश्वर अल्लाह रब को समझो नहीं अलग कर! 
 
ना कोई ईश्वर छोटा है, नहीं कोई ख़ुदा खोटा, 
ना कोई अल्लाह असल, नहीं कोई रब नक़ल, 
सतश्री को जिस संज्ञा से मानो उसमें है फल, 
नाम के नाहक़ फेर में नाकर ईश निंदा छल!

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