इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना

15-09-2024

इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

चेहरे पे अहम, मन में वहम, 
कहाँ गया तेरा वो भोलापन, 
कुछ तो चीन्हे-चीन्हे से लगते हो, 
कुछ लगते हो तुम बेगानेपन जैसे! 
 
चेहरे की वो तेरी चहक, 
कहाँ गयी वो तेरी बहक, 
बचपन में बड़े अच्छे दीखते थे तुम तो, 
बुढ़ापे में क्यों हो गए तुम बचकाने से! 
 
कहाँ गया वो आत्मबल, 
क्यों होने लगे मरियल, 
यौवन का तेरा वो आवारा बाँकपन, 
क्यों खो गया है, ओ मेरे जानेमन! 
 
कहाँ गयी तेरी चंचलता, 
कहाँ से आई विह्वलता, 
क़िस्मत के तुम मारे कभी नहीं थे, 
जीवन से भी तुम हारे कभी नहीं थे! 
 
कभी बड़े प्यारे-प्यारे से, 
अब क्यों तुम बेचारे से, 
जीवन में बहुत कुछ पाया है तुमने
अब डरते क्यों उनके खो जाने से! 
 
बचपन खोया, यौवन पाया, 
यौवन खोया, बुढ़ापा आया, 
बुढ़ापे से अब क्या आस लगाए तुम हो, 
बुढ़ापे को जाने दो बचपन को आने दो! 
 
दुनिया की रीत यही, 
हार में भी जीत यही, 
पुराने को खोकर ही नवीन को है पाना, 
रोते-रोते आए थे अब हँसते-हँसते जाना! 
 
नित खोते हो, तब पाते हो, 
कुछ पाने से तुम हँसते हो, 
फिर खोने से निराश क्यों हो जाना, 
खोओगे नहीं तो फिर पाओगे कैसे? 
 
यहाँ नहीं है कुछ भी कम, 
यहाँ नहीं कुछ भी अधिक, 
अगर आगे की साँस लेनी होती, 
तो पीछे की साँस छोड़नी होती! 
 
यहाँ जो पाए हो यहीं के थे, 
यहाँ से जाओगे छोड़ यहीं पे, 
देह मिली यही, नेह मिला यंही आके, 
माता पिता का स्नेह मिला यहीं आके! 
 
भाई बहन सा सदेही, 
जीवन साथी व संगी, 
माता पिता के बदले पुत्र पुत्री को पाना, 
जितने प्यारे खोते, उतने प्यारे को पाना! 
 
जिसकी चादर जितनी धुली, 
उसको वैसी ही धुली मिलेगी, 
इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना, 
धूल मिलाओगे तो धुला नहीं मैला तन पाना! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में