मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ

01-06-2023

मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मैं कौन हूँ? 
क्या मैं एक बालक हूँ? 
नहीं वो कभी था
अब मैं बालक नहीं हूँ! 
 
फिर मैं युवा हूँ
नहीं वो भी कभी था अब कहाँ हूँ? 
 
तो फिर क्या मैं वृद्ध हूँ? 
हो सकता है अभी मैं वृद्ध हूँ
तो फिर क्या मैं चिरकाल तक
एक वृद्ध बनकर रहूँगा 
नहीं मैं वृद्ध के बाद मृतक हो जाऊँगा! 
 
तो क्या मैं मृतक हूँ? 
अगर हाँ तो कोई मृतक
क्यों नहीं कहता कि मैं मृतक हूँ? 
जैसे कि मैं बालक हूँ, मैं युवा हूँ मैं वृद्ध हूँ 
कहता है हर कोई इस देह से
वैसे मृतक क्यों नहीं कहता
कि मैं मृतक हूँ इसी देह से! 
 
फिर तो मैं मृतक नहीं हूँ 
मैं बालक जब था ख़ुद को बालक कहा
मैं युवा जब था ख़ुद को युवा कहा
मैं जब वृद्ध हूँ ख़ुद को वृद्ध कहता हूँ 
कहता रहूँगा, मगर मैं मृतक हूँ 
ना मैंने कभी कहा ना कभी कहूँगा! 
 
ना किसी मृतक से कहते सुना
कि मैं मृतक हूँ 
और ना कोई मृतक कभी कहेगा
फिर तो मैं मृतक कभी नहीं हूँ! 
 
यानी मृतक के बाद भी मैं हूँ 
मगर मैं देह नहीं हूँ देह मेरी है! 
 
जैसे मैं बोलता हूँ मगर मैं मुँह नहीं हूँ 
बल्कि मुँह मेरा है! 
 
मैं चलता हूँ मगर मैं पैर नहीं हूँ 
बल्कि पैर मेरा है! 
 
मैं मरता हूँ मगर मैं मृतक नहीं हूँ 
बल्कि वह मृत शरीर मेरा है! 
 
लेकिन अब उस शरीर में मेरा बसेरा नहीं है! 
 
मैं शरीर से शरीर लेकर आया नन्हा सा
ध्वनित ज़ोर से मुँह से ध्वनि करता हुआ
तो क्या मैं मुँहज़ोर वाकवीर ब्राह्मण हूँ? 
नहीं वर्षों मुझे बोलना सिखाया गया, नाम दिया गया, 
उपाधि दी गई, उपनयन जनेऊ पहनाया गया, 
तिलक लगाया गया, ब्रह्मणत्व दिया गया, 
माँ पिता गुरु रक्त रिश्तेदारों द्वारा
तब कही मेरे मुख से कहलाया गया मैं ब्राह्मण हूँ! 
 
मेरी भुजाओं को सहलाया गया मुझमें क्षत्रियत्व भरा गया
तब मैंने स्वयं को क्षत्रिय समझ लिया! 
 
मुझे आभूषणों से सजाया गया धनोष्मित किया गया
तब मुझे वणिक महासेठ होने का अहसास हुआ! 
 
और न जाने क्यों जब लोगों ने 
मुझे दबाया सताया सबकुछ छीन श्रीहीन कर दिया
तब मेरे मन में दलित छलित भाव भर आया! 
 
अस्तु मैं ब्राह्मण से दलित व ईसाई मुस्लिम नहीं हूँ
ये तो आया गया भाव प्रभाव दबाव बदलाव है! 
 
तो क्या मैं सनातन वैदिक हिन्दू हूँ? 
नहीं हिन्दुत्व तो सतत आरोपित मनोभाव गुणधर्म है
जिसे झटके से तिलक उपनयन त्याग कर 
कुछ और हो जा सकता हूँ आवेश में ठेंगा दिखाकर! 
 
तो फिर मैं कौन हूँ? जब मौन हूँ जब गौण हूँ
जब अकार हूँ जब निराकार हूँ जब अस्वीकार हूँ
क्षितिज धरा जल पावक गगन समीर से परे
असीम सीमाहीन परमाणु से परमात्मा तक प्रसार हूँ
आकार में बँधा साकार जीवात्मा हूँ 
निराकार जीव से परे परमात्मा जीवन आधार हूँ! 

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