मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ 

01-04-2024

मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
जब चाह नहीं होती है नई दोस्ती करने की 
किसी अमीर ओहदेदार के पास सटकर बैठने की 
किसी पद पैसा प्रतिष्ठा वाले की ख़ुशामद करने की! 
 
बस इतनी सी चाहत है 
कि बचपन का हमउम्र साथी सलामत हो 
और उनके घुटने में इतनी ज़रूर ताक़त हो 
कि अपने घर छत की सीढ़ी चढ़–उतर कर 
किसी राह चौराहे पार्क में प्रकट बेखटक हो! 
  
ईश्वर से चाहत है
मेरे पुराने दोस्तों को लंबी उम्र बख़्श दें 
ताकि अंतिम विदाई के क्षण में 
चाहने वालों के साथ कुछ पुराने हमसफ़र 
संगी साथी शख़्सियत भी साथ हो 
जो अनजान पथ पर प्रस्थान के पूर्व 
हौसला अफ़ज़ाई करे दिलासा देकर 
कि तुम बढ़ाओ कुछ पग शरीर छोड़कर 
डगर में अकेलापन की चिंता मत कर 
मैं पीछे सें शीघ्र आ रहा लंबी डग भरकर! 
 
मैं उम्र के उस पड़ाव पर हूँ 
जब अंतर नहीं करना चाहता हूँ धूप–छाँव में 
देश भर घूमा पर रहने में अच्छा लगता गाँव में
मुझे ख़्वाहिश नहीं है किसी से कराना ख़ुशामद 
अब लिखना पसंद नहीं लेखा-जोखा ख़र्च–आमद! 
 
मैं इतना भर से आश्वस्त होना चाहता हूँ 
कि मुझसे कोई शिकवा शिकायत नहीं करने लगे 
कोई कोसने ना लगे कामयाबी में कमी के कारण 
कोई ताना ना दे वैध–अवैध मदद नहीं कर पाने की
कि मैंने ईमानदारी से जिया बेईमानी कभी नहीं की! 
 
कोई हाल-चाल पूछे या ना पूछे मुझे तनिक ग़म नहीं 
पर इतने भर से मस्त हूँ जब साथ हो हमउम्र साथी! 
 
मैं उम्र की उस दौर में हूँ 
जब युवा जन से कुछ अपेक्षा नहीं करता हूँ
फिर भी अपनों की उपेक्षा का शिकार हो जाता हूँ
प्यार पाने का क़ाबिल हूँ पर अपनों से दुत्कार पाता हूँ! 
 
मैं उम्र की उस जद में हूँ 
जब अपनों की बेरुख़ी बेहद दुखद लगता है
किसी अपनों के आसपास नहीं आने जाने से 
किसी नज़दीकी के हाय हैलो नहीं सुन पाने से 
किसी नाते रिश्ते द्वारा अपनापन नहीं दिखाने से
जबकि आजीवन मैंने नहीं किया बहाने किसी से! 
 
ऐसे में कोई ख़ैर ख़बर पूछे या ना पूछे 
कोई करे नहीं मुझसे जीवन की चर्चा वार्ता 
फिर भी मेरी चाहत है सबका हो भला 
किसी को मेरी वजह हो नहीं हानि हर्जा! 
 
मैं उम्र की उस ढलान पर हूँ 
जब नीचे ढलान पर उतर नहीं सकता 
ऊँची चढ़ाई भी चढ़ नहीं सकता 
किसी के लिए दालान भी नहीं बना सकता
किसी के बुलावे पर झट आवाग़मन नहीं करता 
पर किसी स्वजन का मन भी म्लान नहीं करता! 
 
फिर भी जाने ऐसा क्यों लगता है
कि इस उम्र में मैं सबके काम आ सकता हूँ 
सबका काम बिना दाम आसान कर सकता हूँ
जीवन का खट्टा मीठा अनुभव सलाह दे सकता हूँ
मैं घृणा द्वेष जलन अहम वहम प्रतिस्पर्धा से परे हूँ
इसलिए परेशान जन को सुखद अहसास दे सकता हूँ! 
 
मैं उम्र के उस मुक़ाम पर हूँ 
कि मुझे लगता मैं सिर्फ़ दुआ-सलाम नहीं हूँ 
कि मुझपर विश्वास करो आज़मा कर तो देखो
कि मैं गिनती में पहली संख्या रामो जी राम हूँ
मैं जीवन का आख़िरी पैग़ाम भी राम राम हूँ! 

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