बुद्ध ने कहा मानो नहीं जानो
विनय कुमार ’विनायक’
बुद्ध ने कहा मानो नहीं जानो
मानने से जानने की जिज्ञासा मर जाती
ईश्वर है कि नहीं इस बात में बुद्ध ने चुप्पी साध ली
आत्मा है कि नहीं बुद्ध ने आत्मा की मान्यता मिटा दी
धर्म है कि नहीं बुद्ध ने छद्म धार्मिक भ्रांति भी छाँट दी!
बुद्ध का पुनर्जन्म आत्मा का पुनर्जन्म नहीं
बुद्ध का तर्क जैसे एक आम बीज से एक वृक्ष जन्म लेता
जो हज़ारों आम बीज एक साथ पैदा करता
लेकिन हज़ारों आम एक मूल बीज का पुनर्जन्म नहीं हो सकता!
बुद्ध का पुनर्जन्म आत्मा का पुनर्जन्म नहीं
बल्कि चेतना का देहांतरण है, जैसे एक लहर दूसरे लहर का कारण
जैसे एक दीपक की लौ से दूसरे दीपक की लौ जलती
एक जन्म के कर्म की इच्छा वासना से प्रेरित दूसरा पुनर्जन्म होता
जन्म दुःख ज़रा मृत्यु जीवनचक्र से मुक्ति ज्ञान निर्वाण प्राप्ति से होती!
बुद्ध धर्मभीरु गुरु नहीं तार्किक दार्शनिक थे
उनके तर्क से शंका होती जिसका समाधान भी तर्क में ही
उनका जीवन दर्शन दुनिया में सर्व दुखम दुखम नहीं
अगर जीवन में दुख है तो उसका कारण और निवारण भी है
बुद्ध का आर्य सत्य दुख के मूल को जान मुक्ति निर्वाण पाना!
बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कभी नहीं कहा
कि ईश्वर आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म होते ही नहीं
हो सकता है ये सब होते हों, ये सब होते हों सही
अगर नहीं तो बुद्ध ने पूर्वजन्म की जातक कथा क्यों कही?
हाथी आदि पशु योनियों में अपने पूर्वजन्म की बात क्यों की?
बुद्ध ने कहा सम्भावना पर विश्वास नहीं करो सच जानो
सच यह है कि ईश्वर व्यक्ति नहीं आकृति नहीं मूर्ति नहीं
ईश्वर एक नियम एक व्यवस्था, इसे कोरी आस्था मत मानो!
आस्था जब मान्यता बन जाती तो वह आकृति बन जाती
मान लेने पर पत्थर की तराशी गई मूर्ति ईश्वर बन जाती
विश्वास इतना कि मूर्ति सर्वशक्तिमान हस्ती मान ली जाती
मगर ऐन वक़्त पर पत्थर मूर्ति की शक्ति काम नहीं आती!
याद नहीं बुद्ध अवसान के बाद मुहम्मद ग़ज़नवी द्वारा
सोमनाथ मंदिर विध्वंस व्यथा, जिसमें हज़ारों पुजारी व श्रद्धालु
पत्थर मूर्ति शिवलिंग से चमत्कार की आशा में हाथ जोड़े खड़े थे
मुट्ठी भर लुटेरे ने मंदिर तोड़े, सोने चाँदी रत्न लूटपाट कूट काट गए
माँ बहन बेटियों से बलात्कार किए, उठा पटक ले गए बाँटने के लिए?
काश कि एक-एक पत्थर लुटेरे पर फेंक कर मार देते तो दूसरे लुटेरे
गोरी ग़ुलाम खिलजी तुगलक सैयद लोदी मुग़ल फिर लूटने ना आते?
ये पत्थर की प्रभु मूर्ति कभी एक नहीं, एक जैसी नहीं रहती
ये मूर्ति स्वार्थपूर्ति का साधन हो जाती, ये मूर्ति रूप बदलते रहती
ये पत्थर की मूर्ति जब पथरा जाती, धातु की मूर्ति हो जाती
ये मूर्ति आस्था व कृतार्थ भाव से पहले पहल बुद्ध की बनाई गई!
आगे चलकर ये मूर्ति ब्रह्मा विष्णु शंकर गणपति की होने लगी
मिट्टी की बेशुमार मूर्ति सुबह बनी शाम तक भसान कर दी जाती
दुर्गा काली सरस्वती लक्ष्मी की मृण्मूर्ति बनती, मिट्टीपलीद होती
आज देवता ईश्वर के प्रति आस्था कहाँ से कहाँ भटकती चली गई!
बुद्ध ने ईश्वर आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म पर इसलिए की शंका
क्योंकि बिना देखे ईश्वर को मनुज करने लगे तरह-तरह की आशंका
मानव अपनी इच्छानुसार ईश्वर को नाम धाम आकृति देने लगा
तदनुसार स्वर्ग नर्क की प्राप्ति हेतु भिन्न-भिन्न नाम को जपने लगा
जबकि क़ुदरत को नहीं पता कौन उसे किस-किस नाम से पुकारता?
आज परिस्थिति ऐसी की कोई कृष्ण की परकीया प्रिया राधा का
आशिक़ होकर राधा! राधा! नाम जपता, स्वयं को कृष्ण समझता
ये सखी प्रेमी भाव वासना से प्रेरित मुक्ति नहीं मानसिक विकृति
अहं ऐसा कि जाति घृणायुक्त ख़ुद को जग्द्गुरु शंकराचार्य कहता!
कोई बलि दे, कोई बिस्मिल्लाह बोल जीव की हत्याकर खा जाता
कोई ख़ुदा के नाम बरगला, जन्नत बहत्तर हूर का ख़्वाब दिखाता
अंधविश्वास ऐसा कि आत्मघाती फिदायिन बन कर मरता मारता
ये मानसिक दिवालियापन अज्ञानता व दिग्भ्रमित चेतना से आता!
बुद्ध ने कहा धर्म का अर्थ वस्तु की धारण शक्ति
‘ऐसो धम्म सनंतनो’ ये धरा का धर्म धारण, सूर्य धर्म ऊष्मा
बुद्ध ने ऐसो धम्म सनंतनो कह कोई सनातन धर्म नहीं चलाया
बल्कि सनातन से चले आ रहे जीव प्रकृति के गुण को धर्म कहा
जब धर्म धारणा बन जाए तो धर्म अंधभक्ति आस्था कहलाता,
धर्म प्रकृति का विधि-नियम-कानून गुरुत्वाकर्षण बल आदि है,
जब विधि विधाता बनते, तो ब्रह्मा विष्णु महेश हो जाते देवता!
ब्रह्मा विष्णु महेश जो सर्जक पालक मारक त्रिदेव कहलाते
जिसे अध्यात्म मानव का राजस सात्विक तामस भाव मानते
उसे विज्ञान पदार्थ का त्रिगुण इलेक्ट्रॉन प्रोट्रॉन न्यूट्रॉन कहते
इनमें संतुलन से जीवन, इसमें असंतुलन से दुर्घटना मरण होते!
अगर सच में प्रेम करोगे प्रेम पाओगे, क्रोध से कट मर जाओगे
स्नानघर में फिसल सीढ़ी से लुढ़क मरे कोई तो कहाँ दोष ईश्वर का?
मानव को जितना दुख है, वो किसी ईश्वर ख़ुदा का नहीं दिया गया
मानव ने प्रकृति विरुद्ध आचरण कर के ख़ुद ही दुख लिया दिया!
अगर अमेरिका जापान की नागासाकी हिरोशिमा स्थान पर
एटम बम नहीं बरसाता तो लाखों शिंटो बौद्ध तबाह ना होते
अगर मुहम्मद जिन्ना नोआखाली में मज़हब के नाम पर
सीधी कार्रवाई कर दंगा नहीं करवाता तो लाखों हिन्दू ना मरते!
बुद्ध के समक्ष सिर्फ़ धर्म आत्मा ईश्वर पुनर्जन्म समस्या नहीं
बुद्ध के सामने भेदभावपरक जाति व्यवस्था भी मूर्त हो खड़ी थी
जाति ऐसी कि जाती नहीं, जाति स्वजाति के बचाव में झूठ बोलती
धर्मग्रंथों में महामानवों के बहाने जाति वर्चस्व की कथा कही जाती
ऐसे में बुद्ध ने तर्क से मानव निर्मित दुख से मुक्ति की बात कही!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अधिकांश धर्मांतरित हो जाते स्वदेशी संस्कृति से दूर
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अब सत्य अहिंसा मार्ग में बाधा ही बाधा है
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- अफ़ग़ान विजेता: सरदार हरि सिंह नलवा का जलवा
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आज हर जगह संकट में क्यों जी रहा है आदमी?
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आदमी अगर दुःखी है तो स्वविचार व मन से
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- आख़िर हर जगह हिन्दू ही क्यों मारे जाते हिन्दू क्यों संहारे जाते?
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- उर्वशी कोई हूर परी अप्सरा नहीं उर में बसी वासना होती
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक अकेला शिव शव होता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- एक ईमानदारी के कारण मैंने जिया तन्हा-तन्हा जीवन
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जातियों के बीच जातिवाद हिन्दुओं को कर रहा बर्बाद
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तब बहुत याद आते हैं पिता
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया भर के लोगों की हँसने और रोने की भाषा एक होती
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत अधिक प्यार करनेवाली माँ गांधारी कुन्ती कैकई यशोदा होती
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- बुद्ध ने कहा मानो नहीं जानो
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- भगवान राम कृष्ण भी पूर्वजन्म के कर्मफल से बचा नहीं कोई
- भारत की अधिकांश जातियाँ खत्ती-खत्तीय क्षत्रियों से बनी
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता अच्छा बुरा बर्ताव करता
- मनुस्मृति के भेदभावपूर्ण ज्ञान से सनातन धर्म का नहीं होगा उत्थान
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वतन पर न्योछावर अमर दिलवर दिलदार को नमन
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सत्य सदा बदल रहा तुम किस सत्य को पकड़े हो
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सीता मंदोदरी गर्भेसंभूता चारुरूपिणी क्षेत्रजा तनया रावण की
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- हे अग्नि! राक्षसों से हिंसकों से रावण से हमें बचाओ
- हे ऊर्ध्वरेता भीष्म! आप अजूबा क़िस्म के महामानव थे
- हे मानव अपनी मानवता को बचाए रखना
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
- नज़्म
- ऐतिहासिक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-