बुद्ध ने कहा मानो नहीं जानो 

15-09-2025

बुद्ध ने कहा मानो नहीं जानो 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बुद्ध ने कहा मानो नहीं जानो 
मानने से जानने की जिज्ञासा मर जाती 
ईश्वर है कि नहीं इस बात में बुद्ध ने चुप्पी साध ली 
आत्मा है कि नहीं बुद्ध ने आत्मा की मान्यता मिटा दी 
धर्म है कि नहीं बुद्ध ने छद्म धार्मिक भ्रांति भी छाँट दी! 
 
बुद्ध का पुनर्जन्म आत्मा का पुनर्जन्म नहीं
बुद्ध का तर्क जैसे एक आम बीज से एक वृक्ष जन्म लेता
जो हज़ारों आम बीज एक साथ पैदा करता 
लेकिन हज़ारों आम एक मूल बीज का पुनर्जन्म नहीं हो सकता! 
 
बुद्ध का पुनर्जन्म आत्मा का पुनर्जन्म नहीं
बल्कि चेतना का देहांतरण है, जैसे एक लहर दूसरे लहर का कारण
जैसे एक दीपक की लौ से दूसरे दीपक की लौ जलती 
एक जन्म के कर्म की इच्छा वासना से प्रेरित दूसरा पुनर्जन्म होता 
जन्म दुःख ज़रा मृत्यु जीवनचक्र से मुक्ति ज्ञान निर्वाण प्राप्ति से होती! 
 
बुद्ध धर्मभीरु गुरु नहीं तार्किक दार्शनिक थे 
उनके तर्क से शंका होती जिसका समाधान भी तर्क में ही 
उनका जीवन दर्शन दुनिया में सर्व दुखम दुखम नहीं 
अगर जीवन में दुख है तो उसका कारण और निवारण भी है 
बुद्ध का आर्य सत्य दुख के मूल को जान मुक्ति निर्वाण पाना! 
 
बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कभी नहीं कहा 
कि ईश्वर आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म होते ही नहीं 
हो सकता है ये सब होते हों, ये सब होते हों सही 
अगर नहीं तो बुद्ध ने पूर्वजन्म की जातक कथा क्यों कही? 
हाथी आदि पशु योनियों में अपने पूर्वजन्म की बात क्यों की? 
 
बुद्ध ने कहा सम्भावना पर विश्वास नहीं करो सच जानो 
सच यह है कि ईश्वर व्यक्ति नहीं आकृति नहीं मूर्ति नहीं 
ईश्वर एक नियम एक व्यवस्था, इसे कोरी आस्था मत मानो! 
 
आस्था जब मान्यता बन जाती तो वह आकृति बन जाती 
मान लेने पर पत्थर की तराशी गई मूर्ति ईश्वर बन जाती 
विश्वास इतना कि मूर्ति सर्वशक्तिमान हस्ती मान ली जाती
मगर ऐन वक़्त पर पत्थर मूर्ति की शक्ति काम नहीं आती! 
 
याद नहीं बुद्ध अवसान के बाद मुहम्मद ग़ज़नवी द्वारा 
सोमनाथ मंदिर विध्वंस व्यथा, जिसमें हज़ारों पुजारी व श्रद्धालु 
पत्थर मूर्ति शिवलिंग से चमत्कार की आशा में हाथ जोड़े खड़े थे
मुट्ठी भर लुटेरे ने मंदिर तोड़े, सोने चाँदी रत्न लूटपाट कूट काट गए
माँ बहन बेटियों से बलात्कार किए, उठा पटक ले गए बाँटने के लिए? 
 
काश कि एक-एक पत्थर लुटेरे पर फेंक कर मार देते तो दूसरे लुटेरे 
गोरी ग़ुलाम खिलजी तुगलक सैयद लोदी मुग़ल फिर लूटने ना आते? 
 
ये पत्थर की प्रभु मूर्ति कभी एक नहीं, एक जैसी नहीं रहती 
ये मूर्ति स्वार्थपूर्ति का साधन हो जाती, ये मूर्ति रूप बदलते रहती 
ये पत्थर की मूर्ति जब पथरा जाती, धातु की मूर्ति हो जाती 
ये मूर्ति आस्था व कृतार्थ भाव से पहले पहल बुद्ध की बनाई गई! 
  
आगे चलकर ये मूर्ति ब्रह्मा विष्णु शंकर गणपति की होने लगी 
मिट्टी की बेशुमार मूर्ति सुबह बनी शाम तक भसान कर दी जाती 
दुर्गा काली सरस्वती लक्ष्मी की मृण्मूर्ति बनती, मिट्टीपलीद होती
आज देवता ईश्वर के प्रति आस्था कहाँ से कहाँ भटकती चली गई! 
 
बुद्ध ने ईश्वर आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म पर इसलिए की शंका
क्योंकि बिना देखे ईश्वर को मनुज करने लगे तरह-तरह की आशंका 
मानव अपनी इच्छानुसार ईश्वर को नाम धाम आकृति देने लगा 
तदनुसार स्वर्ग नर्क की प्राप्ति हेतु भिन्न-भिन्न नाम को जपने लगा 
जबकि क़ुदरत को नहीं पता कौन उसे किस-किस नाम से पुकारता? 
 
आज परिस्थिति ऐसी की कोई कृष्ण की परकीया प्रिया राधा का 
आशिक़ होकर राधा! राधा! नाम जपता, स्वयं को कृष्ण समझता 
ये सखी प्रेमी भाव वासना से प्रेरित मुक्ति नहीं मानसिक विकृति
अहं ऐसा कि जाति घृणायुक्त ख़ुद को जग्द्‌गुरु शंकराचार्य कहता! 
 
कोई बलि दे, कोई बिस्मिल्लाह बोल जीव की हत्याकर खा जाता
कोई ख़ुदा के नाम बरगला, जन्नत बहत्तर हूर का ख़्वाब दिखाता
अंधविश्वास ऐसा कि आत्मघाती फिदायिन बन कर मरता मारता 
ये मानसिक दिवालियापन अज्ञानता व दिग्भ्रमित चेतना से आता! 
 
बुद्ध ने कहा धर्म का अर्थ वस्तु की धारण शक्ति 
‘ऐसो धम्म सनंतनो’ ये धरा का धर्म धारण, सूर्य धर्म ऊष्मा 
बुद्ध ने ऐसो धम्म सनंतनो कह कोई सनातन धर्म नहीं चलाया
बल्कि सनातन से चले आ रहे जीव प्रकृति के गुण को धर्म कहा
 
जब धर्म धारणा बन जाए तो धर्म अंधभक्ति आस्था कहलाता, 
धर्म प्रकृति का विधि-नियम-कानून गुरुत्वाकर्षण बल आदि है, 
जब विधि विधाता बनते, तो ब्रह्मा विष्णु महेश हो जाते देवता! 
 
ब्रह्मा विष्णु महेश जो सर्जक पालक मारक त्रिदेव कहलाते
जिसे अध्यात्म मानव का राजस सात्विक तामस भाव मानते 
उसे विज्ञान पदार्थ का त्रिगुण इलेक्ट्रॉन प्रोट्रॉन न्यूट्रॉन कहते 
इनमें संतुलन से जीवन, इसमें असंतुलन से दुर्घटना मरण होते! 
 
अगर सच में प्रेम करोगे प्रेम पाओगे, क्रोध से कट मर जाओगे
स्नानघर में फिसल सीढ़ी से लुढ़क मरे कोई तो कहाँ दोष ईश्वर का? 
मानव को जितना दुख है, वो किसी ईश्वर ख़ुदा का नहीं दिया गया
मानव ने प्रकृति विरुद्ध आचरण कर के ख़ुद ही दुख लिया दिया! 
 
अगर अमेरिका जापान की नागासाकी हिरोशिमा स्थान पर 
एटम बम नहीं बरसाता तो लाखों शिंटो बौद्ध तबाह ना होते 
अगर मुहम्मद जिन्ना नोआखाली में मज़हब के नाम पर 
सीधी कार्रवाई कर दंगा नहीं करवाता तो लाखों हिन्दू ना मरते! 
 
बुद्ध के समक्ष सिर्फ़ धर्म आत्मा ईश्वर पुनर्जन्म समस्या नहीं 
बुद्ध के सामने भेदभावपरक जाति व्यवस्था भी मूर्त हो खड़ी थी 
जाति ऐसी कि जाती नहीं, जाति स्वजाति के बचाव में झूठ बोलती 
धर्मग्रंथों में महामानवों के बहाने जाति वर्चस्व की कथा कही जाती 
ऐसे में बुद्ध ने तर्क से मानव निर्मित दुख से मुक्ति की बात कही! 

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