कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर 

01-10-2024

कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 262, अक्टूबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर, 
कर्ण पाँच पाण्डव के अंदर नहीं था कोई एक धनुर्धर, 
कर्ण की गिनती नहीं पहले या पाँचवें से आरंभ होती, 
पर कर्ण की उपस्थिति बाहर थी, हो सकती भीतर भी! 
 
कर्ण था अतिमहत्वाकांक्षी, पदलोलुप, योद्धा नहीं शालीन, 
येन-केन-प्रकारेण बिना उद्यम का राज्य किया हासिल, 
प्राप्त वैभव बिना श्रम का, काला धन होता हीन-मलीन, 
कर्ण ने काला सोना दानकर पाई महादाता की मंज़िल! 
 
कर्ण ने हक़मार ज़मींदार से हाथ मिलाकर भूधन पाया, 
अताताई का पक्षधर और मित्र बनकर एहसान जताया, 
कर्ण नहीं चाहता था निरंकुश अत्याचारी सत्ता का पतन, 
अंधी सत्ता क़ायम रहे, सहोदर भाई वध का लिया प्रण! 
 
कर्ण कान से जन्मा था, जिसकी कानों-कान थी ख़बर, 
कर्ण कुमारी कोख से जन्मा, कुँवारी माँ पर एक क़हर, 
क्रोधी ऋषि दुर्वासा की सेवा में लगाई गई, बाला कुंती 
पाल्यपुत्री, पुत्रीपालन धर्म में पतित राजा कुंतीभोज की! 
 
कुंती लाड़ली बहन थी, उस वृष्णि कुलभूषण वसुदेव की, 
जिनके सुपुत्र रूप में अवतरित हुए थे योगेश्वर कृष्ण जी, 
कुंती वैदिक संस्कृति की, प्रथम अभागिन कुँवारी माँ थी, 
जिनपर क्रूर क्रोधी दुर्वासा ने प्रयोग की नियोग पद्धति! 
 
कर्ण इसी क्रोधी दुर्वासा का, अवैध सूर्य पुत्र था वरदानी, 
पिता देव हो या ऋषि, कर्ण कुंती की लज्जा की निशानी, 
माता कुमाता नहीं थी, मगर पापी पिता ने की मनमानी, 
यशोदा जैसी माँ राधा के हाथों पला कर्ण, था अभिमानी! 
 
कर्ण चाहता तो बन सकता था, कृष्ण जैसा व्यक्तित्व का, 
जन्म के समय दोनों नवजात परिस्थितिवश परित्यक्त था, 
लेकिन कृष्ण ने कर्ण सा जन्मदात्री को नहीं किए लांछित, 
कर्ण चाहता तो अपना सकता था कृष्ण की सम्यक नीति! 
 
युद्ध प्रारंभ के पूर्व एकमात्र कर्ण को ये ज्ञात हो चुका था, 
कि तीनों कौन्तेय और दोनों माद्रेय शत्रु नहीं, अनुज उनका, 
पर पापी दुर्योधन का एहसानमंद कर्ण हुआ पाषाण दिल का, 
लघु भ्राता पार्थ के प्राणहरण की सौगंध ली ये कैसी स्पर्धा? 
 
कर्ण को अपने भुजबल, क्षात्रधर्म और शौर्य पर थी आशंका, 
छद्म ब्राह्मण बनके पाई शिक्षा, बजा नहीं क्षत्रियत्व का डंका, 
कर्ण हीनग्रंथी ग्रस्त कायर कपूत, मातृ कोख कलंकित किया, 
कर्ण से महान क्षत्रिय एकलव्य था, पाया ज्ञान बिना गुरु का! 
 
कर्ण माफ़िया सत्ता की काली कमाई पर पलनेवाला शागिर्द, 
कर्ण नारी जाति को अपमानित करनेवाला वाणी से कुत्सित, 
दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का झुनझुना किया था अर्पित 
योग्यता नहीं, बल्कि पार्थ के प्रति घृणा जो कर्ण में लक्षित, 
 
कौरव जैसा ही कर्ण को सव्यसाची की प्रतिभा से थी नफ़रत, 
कर्ण धनंजय का प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि था दुर्भावना से ग्रस्त, 
कर्ण अर्जुन से उम्र में काफ़ी बड़ा, मगर थामे था कुंठा अस्त्र, 
सहोदर भाई के ख़ून का प्यासा कर्ण सृष्टि का पहला राक्षस! 
 
महाभारत युद्ध पूर्व जब माता कुंती व कर्ण मिले आपस में, 
माँ ने आँचल पसार कहा कर्ण से सबकुछ था नियति बस में, 
तुम्हारा परित्याग किया लोकलाज सामाजिक भय अपयश में, 
मगर तुम्हें जीवित जानकार अपनाने आई हूँ अपने अंतस में! 
 
किन्तु कर्ण ने माता का हृदय तोड़कर कैसा दुर्व्यवहार किया? 
‘तुम माता हो पाँच पुत्रों की, तुम माता रहेगी पाँच पुत्रों की ही’ 
‘मैंने क़सम खाई अर्जुन वध करने की, अर्जुन के जीते मैं नहीं’ 
‘अर्जुन वध बाद मैं पूर्ण करूँगा पाँच पाण्डवों में आई कमी की’! 
 
कर्ण का दिल भावों से भरा नहीं, कर्ण का विचार न्यारा नहीं, 
अगर कर्ण विजयी होता, तो दुर्योधन को राजमुकुट सौंप देता, 
कर्ण को न्याय नहीं था प्यारा, फिर हक़वंचितों का कौन सहारा? 
कर्ण दुर्योधन का कारिंदा, स्वयंवर में कौरव हेतु नारी अपहर्ता! 
 
कलिंग राजकुमारी भानुमति अर्जुन के लिए वरमालाधारी थी, 
दुर्योधन से प्रेम नहीं करती थी, अर्जुन की पतिम्बरा नारी थी, 
कर्ण ने स्वयंवर स्थल से कर्ण के ख़ातिर राजकुमारी हर ली, 
दुर्योधन वध के बाद भानुमति ने पार्थ से फिर शादी कर ली! 
 
कर्ण द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित दुर्योधन का एक गुमाश्ता, 
घूमती मीन की आँखें बेधकर द्रौपदी दुर्योधन को सौंप देता, 
दुर्योधन को शिक्षा संस्कार मानवता से कुछ भी नहीं वास्ता, 
बिना विवाह संस्कार से जन्मी संतति पतित होती कर्ण सा! 
 
कृष्ण कर्ण और अन्य कौन्तेय से थे समान दूरी पर स्थित, 
सभी उनके बुआपुत्र, प्रयत्न के बावजूद कर्ण बने नहीं सुमित, 
कर्ण का पापी मन, दुर्योधन के एहसान तले ग़ुलाम बन गया, 
कर्ण भी कृष्ण के आगे बुआपुत्र शिशुपाल की तरह तन गया! 
 
महाभारत युद्ध में कर्ण ने क्रूरता व बर्बरता की हद पार की, 
‘यतोधर्म ततोजय’ के प्रतीक भाई युधिष्ठिर को करारी हार दी, 
पवन सा प्रचंड बलशाली भीम ने भी बारंबार हार स्वीकार ली, 
नकुल को घुड़पाल, सहदेव को गोपाल से अधिक समझा नहीं! 
 
मगर सारे कौरव-पाण्डव राजकुमारों में नहीं था कोई अर्जुन सा, 
अर्जुन के शिक्षा संस्कार और धनुर्विद्या से सभी को थी ईर्ष्या, 
द्रोणाचार्य के गुरुकुल में अर्जुन के सिवा कहाँ किसी में प्रतिभा? 
प्रतिभा नहीं विरासती, अन्यथा द्रोण पुत्र के बराबर कौन होता? 
 
महावीर अर्जुन की प्रतिभा का द्रोण के सभी शिष्य थे क़ायल, 
दुर्योधन, दुशासन, अश्वत्थामा, कर्ण थे पार्थ प्रतिभा से घायल, 
कर्ण कोई राजकुमार नहीं बल्कि रथकार पुत्र अधिरथ सूत का, 
कर्ण बाहुबली बनना चाहा और दुर्योधन का हिमायती हो गया! 
 
पापी का पक्षधर कर्ण को अनुज पुत्रों के प्रति भी ममता नहीं, 
अर्जुन तनय अभिमन्यु के कान में फुसफुसा कर गर्दन काटी, 
कर्ण के वक्ष में रक्त रिश्ते के पक्ष में तनिक स्नेह दया नहीं, 
पर दुरात्मा दुर्योधन से इतना नेह सहज प्राप्त समृद्धि से ही! 
 
कर्ण को दुर्योधन से एहसान लेने के पूर्व क्या ये नहीं था पता, 
कि विधवा कुंती पतिगृह से नाबालिग पुत्रों के साथ हुई वंचिता, 
कपटी दुर्योधन ने कुंती पुत्र भीम को विष पिला नदी में डुबोया, 
लाक्षागृह में माता सहित पाण्डवों को जलाने का षड्यंत्र किया! 
 
कर्ण था कौरव सम्राट के कर्मकार अधिरथ सूत का पाल्य पुत्र, 
अधिरथ रथ हाँकते थे भीष्म का, राजा पाण्डु का, धृतराष्ट्र का, 
कर्ण की मानसिकता ओछी थी, कर्ण था एक कुंठित प्रतिभा का, 
कर्ण ने सारथी नहीं, महारथी बनने का ख़्वाब सँजोए रखा था! 
 
ख़्वाब देखना बुरा नहीं पर ख़ैरात में मिली उपलब्धि वैध नहीं, 
माना कि कर्ण का समय था, वर्णश्रेष्ठता जातिवादी अनय का, 
पर कर्ण नहीं था हितचिंतक, निम्न वर्ण जाति और अंत्यज का, 
पार्थ विरोध का कारण यदि सवर्णता, तो क्या दुर्योधन शूद्र था? 
 
कर्ण लक्ष्य प्राप्ति के लिए कुमार्गगामी एक अवसरवादी चरित्र, 
कर्ण अपने पिता के स्वामी पुत्रों के बीच में बढ़ाने लगा रंजिश, 
स्वामी पुत्रों के निजी गुरु से शिष्यत्व प्राप्ति हेतु की साज़िश, 
कर्ण विप्र बनके छले परशुराम को, जो द्विज के गुरु स्वघोषित! 
 
राजसारथी पुत्र कर्ण की औक़ात नहीं हुई थी महारथी होने की, 
कर्ण का राजभवन में प्रवेश हुआ कार्मिक आश्रित के रूप में ही, 
राजकाज में हस्तक्षेप के लिए कर्ण अधिकृत हुआ नहीं था कभी, 
महाभारत रण के पूर्व कर्ण दुर्योधन का पोषित गुर्गा था मामूली! 
 
कर्ण ने कौरव का बाहुबली बनके बड़े-बड़े राजा पर वार किए थे, 
मगधराज जरासंध को विजित किए, जिनसे कृष्ण भी हार गए थे, 
कौरव की कुटिलता बढ़ाने में कर्ण का बहुत अधिक योगदान था, 
अकेला दुर्योधन कायर था स्वयंवर या रण में कर्ण समाधान था! 
 
अज्ञातवास में पाण्डव भ्रातागण विराट राजघराने में थे शरणागत, 
जिस वजह से कौरवों ने विराटराज का गोधन हर के ढाई आफ़त, 
बृहनल्ला वेशधारी अकेले पार्थ ने परास्त किए भीष्म से कर्ण तक, 
दुर्योधन द्वारा किए गए हर अत्याचार में कर्ण का था वरदहस्त! 
 
अगर कृष्ण न होते सिर्फ़ कर्ण होता तो सत्यमेवजयते नहीं होता, 
सत्य का पक्षधर पाण्डवों को न्याय नहीं मिलता और धर्म रोता, 
फिर पशुता का तांडव होता, दुर्योधन व दुशासन अट्टहास करता, 
राजा का जीजा जयद्रथ, राजा का साला कीचक स्त्री हरण करता! 
 
कौन कहता कृष्ण सह से कर्ण मारा गया सहोदर भाई के हाथ से? 
कर्ण नहीं मरता, कर्ण रहता पाँच चिरंजीवी के अंदर बाहर साथ में, 
कर्ण किसी घर परिवार में जन्म लेता, भाई को भाई नहीं मानता, 
पद पैसा अहंकार स्वार्थ के ग़ुरूर में, मारने मरने का व्रत पालता! 

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