ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता

15-04-2024

ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

अपने ही लोग ज़हर बुनते हैं
अपने अपनों की तरक़्क़ी में सिर धुनते हैं! 
  
अपनों के बीच बड़ी साज़िश होती 
अपनों के मध्य बड़ी रंजिश होती 
अपनों के बनाए व्यूह से बच पाना 
तो सबसे बड़ा क़िला फ़तह होता है! 
 
अपनों की नज़र से छिपकर तप करना 
मनोरथ सिद्धि के पूर्व में किसी को 
लक्ष्य गंतव्य कभी नहीं उजागर करना 
वर्ना ऋषि मुनि मानव दानव के तप से
देवराज इन्द्र तक को बुरा लगता है! 
 
कुछ पाना हो तो कुछ खोना ही होता 
रिश्ते नाते मित्र कुटुम्ब से दूर हो जाना होता 
जीवन में पहला प्रतिद्वंद्वी हित मित्र गोत्री होता
प्रतिस्पर्धी का प्रतिस्पर्धी उसका साथी संगी होता! 
 
कोई भी प्रतियोगी प्रतिभागी अपने प्रतियोगी का 
कभी नहीं हितचिंतक होता बल्कि निंदक ही होता 
किसी की सफलता पर मातम मनाने वाला पहला 
अपरिचित शत्रु नहीं, परिचित हित मित्र कुटुम्ब होता! 
 
किसी की उपलब्धि पर सबसे अधिक दुखी 
स्वजाति अपना यार अपना नाता रिश्तेदार होता 
अपनों की बुरी नज़र से बच पाना बड़ा दुष्कर होता
लाख भलाई करो अपने जाति गोत्र भाई बंधु का 
उनकी प्राथमिकता सूची में तुम्हारा नाम नहीं होता! 
  
चाहे बदनाम हो जाओ भाई भतीजावाद के नाम से 
पर ये लोग हर अवसर पर तुमसे शत्रुता पाले रहता! 
 
गोत्र मित्र हित कुटुम्ब जो तुम्हारे पास में रहते 
अक़्सर वही तुम्हारे पास आने में विलंब करते 
बहुत सोचना पड़ता पड़ोसी को पड़ोसी घर जाने में 
अहं वहम पद प्रतिष्ठा छोटा बड़ा बहुत सोचना पड़ता 
पड़ोसी शत्रुता और गोतिया घृणा-द्वेष से ओत-प्रोत होता! 

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